Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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शिक्षक की योग्यता एवं दायित्व
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वचन-सम्पदा (१) आदेयवचनता- जिसका कहा हुआ वचन सभी लोग स्वीकार करें। (२) मिष्ठवचनता- जिसके कटुवचन मधुर लगे। (३) अनिश्रितवचनता- निरपेक्ष वचन बोलनेवाला। (४) असंदिग्धवचनता– संशय रहित अर्थात् सुलझे वचन बोलनेवाला। वाचना- सम्पदा (१) विदित्वोद्देशन- ज्ञान ग्रहण करनेवाले पात्र अर्थात् शिष्य की योग्यता देखकर
उद्देशन देना, वाचना देना। (२) विदित्वासमुद्देशन- जो भी पढ़ावें, उसे विस्तार से समुद्देशन करना। (३) परिनिर्वाण्यवाचना- विषयवस्तु को सब प्रकार से भेदानुभेद दर्शाना। (४) अर्थ निर्वाचना- अर्थ-संगतिपूर्वक नय प्रमाण से अध्ययन करानेवाला। मति- सम्पदा (१) अवग्रह- सामान्य रूप से अर्थ को जानना। (२) ईहा- सामान्यरूप से जाने हुये अर्थ को विशेष रूप से जानने की इच्छा होना। (३) आवाय- ईहित वस्तु का विशेष रूप से निश्चय करना। (४) धारणा- ज्ञान वस्तु का कालान्तर में स्मरण रखना। प्रयोग-सम्पदा (१) आत्मपरिज्ञान - अपनी शक्ति देखकर दूसरे के साथ संवाद करना। (२) पुरुष परिज्ञान - जो प्रतिपक्षी है उसकी शक्ति को देखकर उसके साथ संवाद
करना।
(३) क्षेत्र परिज्ञान – वाद-प्रतिवाद करने के क्षेत्र का परिज्ञान होना। (४) वस्तु परिज्ञान – वाद-प्रतिवाद काल में निर्णायक के रूप में स्वीकृत सभापति
आदि का ज्ञान होना क्योंकि धर्म के धारी कहाग्रही हैं कि न्यायपक्षी हैं। प्रतिवादी किस प्रकार का है - अल्पज्ञ है कि विशेषज्ञ, शान्तस्वभावी है या क्रोधी। इससे वाद चर्चा करने में कुछ निष्कर्ष निकलेगा कि नहीं, फिर भी द्रव्य, क्षेत्र, काल,
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