Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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८० जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन से इहलोक और परलोक दोनों में आत्मिक विकास कर सके। लौकिक दृष्टि से बौद्ध शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य के व्यक्तित्व को सुखी बनाना-५ तथा देश-व्यवहार के ज्ञान को प्राप्त कराना था। इसके साथ ही विद्यार्थी को धर्म और विनय की आवश्यक बातें समझाना जिससे कि वह भलीभाँति यह समझ सके कि गलत सिद्धान्त कौन से हैं और वाद-विवाद करके अन्य व्यक्तियों को सही सिद्धान्त ग्रहण करने और गलत सिद्धान्त को छोड़ने के लिए राजी कर सके, लौकिक शिक्षा के अन्तर्गत आते थे।८७
__ 'जातकों' में प्राप्त इन उद्धरणों से शिक्षा के उद्देश्यों पर प्रकाश पड़ता है- एक 'जातक' में लिखा है कि राजा लोग चाहे उनके नगर में ही अच्छे विद्वान् क्यों न हों, अपने पुत्रों को दूर की शिक्षण संस्थाओं में पढ़ने के लिये इसलिए भेजते थे कि उनमें अभिजात कुल में जन्म होने के कारण जो अहंकार होता था वह दूर हो जाये, वे गर्मी और सर्दी को सहन कर सकें और लोकव्यवहार से परिचित हो सकें।८८ अत: कहा जा सकता है कि बौद्ध लौकिक शिक्षा का मुख्य उद्देश्य विद्यार्थी का शारीरिक, चारित्रिक एवं नैतिक विकास करना था। शिक्षा ही मानव जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में सच्चे पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करती है और मनुष्य में अन्तर्निहित अवगुणों और अमानवीय विकारों को मिटाकर उसे सक्षम बनाने का प्रयास करती है। आध्यात्मिक शिक्षा के विषय
आध्यात्मिकता के विषय में बुद्ध हमेशा मौन धारण किये रहते थे। एक बार मालुक्यपुत्र ने बुद्ध से लोक के शाश्वत-अशाश्वत, अन्तवान-अनन्तवान होने तथा जीव-देह की भिन्नता-अभिन्नता के विषय में दस मेण्डक प्रश्नों को पूछा था। लेकिन बुद्ध ने अव्याकृत बतलाकर उनकी जिज्ञासा को शान्त कर दिया था। पोठ्ठपाद परिव्राजक ने भी इन्हीं प्रश्नों को पूछा तो बुद्ध ने स्पष्ट शब्दों में कहा- न यह अर्थयुक्त है, न धर्मयुक्त, न आदि ब्रह्मचर्य के लिए उपयुक्त, न निर्वेद के लिए, न विराग के लिए, न निरोध अर्थात् क्लेशनाश के लिए, न उपशम के लिए, न अभिज्ञा के लिए, न संबोधि अर्थात् परमार्थ ज्ञान के लिए और न निर्वाण के लिए। इसीलिए मैंने इसे अव्याकृत कहा है तथा व्याकृत किया है- दुःख को, दु:ख के हेतु को, दुःख के निरोध को तथा दुःख निरोधगामिनी प्रतिपद् को।९० चार आर्यसत्य
___ 'चार आर्यसत्य' बौद्ध दर्शन का मूल सिद्धान्त है जिसका जानना और समझना बौद्ध-परम्परा के अनुसार आवश्यक है। बुद्ध के अनुसार प्राणी के लिये रोग, जरा और मरण संसार का सबसे बड़ा दुःख है और इन्हीं दःखों के निदान के लिए बुद्ध ने
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