Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
शिक्षा-पद्धति
१२७ द्वारा शिक्षारम्भ करती है जबकि बौद्ध परम्परा चन्दन की पट्टिका पर। जिससे यह कहा जा सकता है कि जैन शिक्षण-पद्धति में साधारण परिवार के बालक आसानी से शिक्षारम्भ कर सकते थे जबकि बौद्ध शिक्षा-पद्धति में चन्दन की
पट्टिका उपलब्ध करना उनके लिए मुश्किल कार्य था। २. प्रश्नोत्तर-विधि दोनों ही परम्पराओं की शिक्षण-प्रणाली का आधार रही है। जैन
शिक्षण-प्रणाली में प्रश्नोत्तर-विधि में गुरु शिष्य के कठिन एवं दुरुह प्रश्नों के उत्तर बड़े ही सरल ढंग से देते थे। साथ ही उत्तर पहेलियों के द्वारा तथा चमत्कारपूर्ण ढंग से देते थे। जबकि बौद्ध-शिक्षण-प्रणाली में प्रश्न एवं उत्तर के चार प्रकार बताये गये हैं - एकांशव्यारणीय, विभज्यव्याकरणीय, प्रतिपृच्छाव्याकरणीय और स्थापनीय। ये दोनों शिक्षण प्रणालियों की अपनी-अपनी विशेषताएँ हैं। शास्त्रार्थ-विधि दोनों ही परम्पराओं में पायी जाती है, परन्तु बौद्ध-प्रणाली में इसका विशेष महत्त्व देखने को मिलता है। जैन-परम्परा में 'ननु' शब्द कहकर शंका उत्पन्न की जाती थी तथा 'इतिचेन' द्वारा शंका का निवारण होता था। बौद्ध-प्रणाली में सम्भवतः इस तरह का विधान नहीं है, परन्तु शास्त्रार्थ के निमित्त प्रतिपादन को अनुलोम, प्रतिपक्षी के उत्तर को प्रतिकर्म, प्रतिपक्षी की पराजय को निग्गह, प्रतिपक्ष के हेतु को उसी के सिद्धान्त में प्रयोग करने को उपनय तथा निष्कर्षित सिद्धान्त को निगमन कहा गया है। इस विधि के द्वारा विद्यार्थियों को कठिन से
कठिन विषय भी सरलता से हृदयंगम कराये जाते थे। ४. जैन एवं बौद्ध दोनों ही परम्पराओं में उपदेश-विधि पायी जाती है तथा दोनों
परम्पराओं ने यह स्वीकार किया है कि यह विधि प्रौढ़ व्यक्तियों के लिए थी। दोनों ही परम्पराओं में स्वाध्याय-विधि पर बल देते हुए कहा गया है कि स्वाध्याय से कर्मों का नाश, दुःखों का क्षय होता है तथा निर्वाण के मार्ग प्रशस्त
होते हैं। ६. जैन परम्परा के अनुसार जिस ज्ञान में सम्यक्त्व हो वह प्रमाण है। बौद्ध परम्परा
ने भी प्रमाण-विधि को स्वीकार किया है और कहा है कि जो ज्ञान अविसंवादी है वह प्रमाण है, परन्तु वस्तु के यथार्थ स्वरूप को बताने में अपनी असमर्थता व्यक्त की है। जैन-परम्परा में प्रत्यक्ष और परोक्ष के आधार पर प्रमाण के दो भेद किये गये हैं। पुन: प्रत्यक्ष के दो अर्थात् पारमार्थिक और सांव्यावहारिक तथा परोक्ष के पांच- स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुभान तथा आगम आदि प्रकारों का निरूपण किया गया है। बौद्ध-परम्परा में भी प्रत्यक्ष और अनुमान दो प्रकार
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org