Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
सौम्यता, (५) व्याख्यान शैली की प्रवीणता, (६) सुबोध व्याख्या शैली, (७) प्रत्युत्पन्नमतित्व, (८) गम्भीरता, (९) प्रतिभासम्पन्नता, (१०) तार्किकता अर्थात् प्रश्न तथा कुतर्कों को सहनेवाला हो, (११) दयालुता, (१२) दूसरे अर्थात् शिष्य के अभिप्रायों को अवगत करने की क्षमता, (१३) समस्त विद्याओं का ज्ञाता, (१४) संस्कृत, प्राकृत आदि अनेक भाषाओं में निपुणता, (१५) स्नेहशीलता, (१६) उदारता, (१७) सत्यवादिता, (१८) सत्कुलोत्पन्नता, (१९) परहित साधन-तत्परता, आदि।२१ 'गुरुतत्त्वविनिश्चय'२२ में निम्नलिखित लक्षण बताये गये हैं
(१) जो सुन्दर व्रतवाला हो, (२) जो सुशील हो, (३) जो दृढ़ व्रतवाला हो, (४) जो दृढ़ चारित्रवाला हो, (५) जो अनिन्दित अंगवाला हो, (६)जो अपरिग्रही हो, (७) जो राग-द्वेष रहित हो, (८) मोह-मिथ्यात्वरूपी मल कलंक से रहित हो, (९) उपशान्तवृत्तिवाला हो, (१०) स्वप्रशास्त्र का जानकार हो, (११) महावैराग्य के मार्ग का जानकार हो, (१२) जो स्त्रीकथा, भक्तकथा, चौर्यकथा, राजकथा और देशकथाओं को न करनेवाला हो, (१३) जो अत्यन्त अनुकम्पाशील हो, (१४) परलोक में प्राप्त होनेवाले विघ्नों से डरनेवाला हो, (१५) जो कुशील का शत्रु हो, (१६) जो शास्त्रों के भावार्थ को जाननेवाला हो, (१७) जो शास्त्रों के रहस्यों को जाननेवाला हो, (१८) जो रात-दिन अहिंसा आदि लक्षण तथा क्षमादि दशधर्म में लीन रहनेवाला हो, (१९) जो निरन्तर पर्वत के समान अडिग बारह तपों को करनेवाला हो, (२०) जो पाँच समितियों का सतत् पालन करनेवाला हो, (२१) जो सतत् तीन गुप्तियों से युक्त रहनेवाला हो, (२२) स्वशक्ति से अठारह हजार (१८०००) शीलांग की आराधना करनेवाला हो, (२३) उत्सर्गरुचि, तत्त्वरुचि और शत्रु-मित्र के साथ समभाव रखनेवाला हो, (२४) जो सात भयस्थानों से मुक्त हो, (२५) जो नौ ब्रह्मचर्य तथा गुप्ति की विराधना से डरनेवाला हो, (२६) जो बहुश्रुत हो, (२७) जो आर्यकुल में जन्मा हो, (२८) जो साध्वी वर्ग के संसर्ग में न रहनेवाला हो, (२९) जो निरन्तर धर्मोपदेश करनेवाला हो, (३०) जो सतत् ओघ समाचार की प्ररूपणा करनेवाला हो, (३१) साधु-मर्यादा में रहनेवाला हो, (३२) जो सामाचारी से डरनेवाला हो, (३३) जो आलोचना के योग्य शिष्य को प्रायश्चित्त करवाने में समर्थ हो, (३४) जो वन्दन-प्रतिक्रमण-स्वाध्यायव्याख्यान-आलोचना-उद्देश और समुद्देश आदि सात समूहों की विराधना का जानकार हो, (३५) प्रव्रज्या-उपसम्पदा और उद्देश-समुद्देश-अनुज्ञा की विराधना का जानकार हो, (३६) द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव-भवान्तर के अन्तर को जाननेवाला हो, (३७) द्रव्यक्षेत्र-काल और भावादि आलम्बन से विमुक्त हो, (३८) जो थके हुये बाल, (३९) वृद्ध, नवदीक्षित साधु और साध्वी को मोक्षमार्ग की ओर प्रवर्तन करने में कुशल हो, (४०)
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