Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय (६७) श्वरलक्षण- कुत्ता-कुत्तियों के खरे-खोटे फल के लक्षण कहने व जातियों
को जानने की कला श्वरलक्षण है। (६८) कौटुभ- श्रौत तथा गृह्य कर्मकाण्ड को जानना कौटुभ कला है। (६९) निघण्टु- पद संकलनात्मक कोशशास्त्र को निघण्टु कहते हैं। इसे निघण्ट
भी कहते हैं। (७०) निगम- मन्त्रवचनों को जानना निगम है। (७१) पुराण- पुरावृत्त विद्या के पुराण नामक ग्रन्थ समूह को जानना पुराण
कला है। (७२) इतिहास- देव, ऋषि, नृप आदि के चरित्रों का शास्त्र इतिहास है। (७३) वेद- मन्त्र, ब्राह्मण, आरण्यक, उपनिषद् ग्रन्थों में विभक्त वाङ्मय वेद है। (७४) व्याकरण- शब्दों के वर्गीकरण तथा प्रकृति-प्रत्यय द्वारा विवेचन करने की
विद्या व्याकरण है। (७५) निरुक्त- निरुक्त निर्वचन शास्त्र को कहते हैं। (७६) शिष्या (शिक्षा)- अ, आ आदि वर्ण उच्चारण करने का शास्त्र। (७७) छन्दस्विनी- छन्दोविचिति नामक छन्दशास्त्र जिसके अन्तर्गत छन्दों की रचना
करना तथा काव्य बनाना आदि आता है। (७८) यज्ञकल्प- यज्ञों के विधि-विधान यज्ञकल्प के विषय हैं। (७९) ज्योतिष- नक्षत्रों तथा उसके शुभ-अशुभ फलों को बतानेवाला शास्त्र। (८०) सांख्य– तत्त्वों को गिनकर बताने की विद्या सांख्य कहलाती है। (८१) योग-- ध्यान-समाधि आदि लगाने की विद्या योग का विषय है। योगाचार १२१
शास्त्र को समझने के लिए बौद्ध विद्यार्थियों को निम्नलिखित ग्रन्थों का अध्ययन करना पड़ता था(क) 'विद्यामात्र विशंतिशास्त्र'। (ख) “विद्यामात्र सिद्धित्रिदशशास्त्र कारिका'। (ग) 'महायान सपरिग्रहशास्त्र मूल'। (घ) 'अभिधर्म (संगीति) शास्त्र' (ङ) 'मध्यान्त
विभागशास्त्र'। (च) “निदानशास्त्र'। (छ) 'सूत्रालंकारशास्त्र'। (ज) 'कर्मसिद्धशास्त्र'। (८२) क्रियाकल्प- शृंगारादि करना इस कला का विषय है। (८३) वैशिक- गणिकाओं के मायाजाल की विद्या को जानना वैशिक कला है।
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