Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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९० जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन (५२) विडम्बित- स्वांग बनाने की कला जिसका दूसरा नाम ढोंग भी है। (५३) माल्यग्रन्थन- विभिन्न प्रकार के फूलों से माला गूंथने की कला
माल्यग्रन्थन है। (५४) संवाहित- संवाहन अथवा अंगों को दबाने की कला संवाहित है। (५५) मणिराग- श्वेत मोतियों को विभिन्न रंगों में रंगने की कला मणिराग
कहलाती है। (५६) वस्त्रराग- कपड़ों को रंगने की कला वस्त्रराग कहलाती है। (५७) मायाकृत- जादूगरी या इन्द्रजाल अर्थात् माया द्वारा दूसरे को भ्रमित या अपने
वश में करने की कला इसका विषय है। (५८) स्वप्नाध्याय- स्वप्न वृत्तान्त सुनकर उसके फल को कहने की कला स्वप्नाध्याय
है। 'मिलिन्दपन्ह' में भी स्वप्न तथा चिह्नों के विधान का वर्णन आया है। १२० (५९) शकुनिरुत्त- पक्षियों की बोली तथा उनके शुभाशुभ फलों को बताने की कला
शकुनिरुत्त है। (६०) स्त्रीलक्षण- स्त्रियों के शरीर, अंग-प्रत्यंगों के चिह्नों को देखकर भाग्यफल कहने
की कला स्त्रीलक्षण का विषय है। (६१) पुरुषलक्षण- पुरुषों के शरीर चिह्नों को देखकर भाग्य कहने की कला पुरुषलक्षण
का विषय है। (६२) अश्वलक्षण- घोड़े के खरे-खोटे फल होने के लक्षण कहने की कला को जानना
तथा उसकी अच्छी-बुरी जातियों को पहचानना इस कला का विषय है। (६३) हस्तिलक्षण- हाथी के खरे-खोटे फल होने तथा अच्छी-बुरी जातियों के लक्षण
को जानना इस कला का विषय है। (६४) गोलक्षण- गाय-बैल के खरे-खोटे फल होने के लक्षण व अच्छी-बुरी जातियों
के लक्षण जानना इस कला का विषय है। (६५) अजलक्षण- बकरी-बकरा के खरे-खोटे फल के लक्षण व उसकी जातियों
के लक्षण को जानना अजलक्षण है। (६६)मिशृलक्षण- मेष अर्थात् भेड़ा-भेड़ी के खरे-खोटे फल के लक्षण व उसकी
विभिन्न जातियों को जानने की कला मिशृलक्षण है।
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