Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय ३. जैन शिक्षा व्यक्तित्व के चरम विकास की स्थिति को मोक्ष कहती तो बौद्ध शिक्षा
दुःखों के अन्त को निर्वाण कहती है। यद्यपि दोनों के उद्देश्य एक ही हैं, मार्ग
अलग-अलग हैं। ४. जैन शिक्षा आध्यात्मिक और लौकिक दोनों ही शिक्षाओं पर समान रूप से बल
देती है जबकि बौद्ध शिक्षा आध्यात्मिकता के सम्बन्ध में अव्याकृत है। यद्यपि दोनों ही परम्परा में मानव जीवन के सर्वाङ्गीण विकास के लिए बहुत ही सूक्ष्मता से विचार किया गया है, परन्तु यहाँ एक प्रश्न उपस्थित होता है कि उच्चकोटि की लौकिक शिक्षा प्राप्त कर लेने पर क्या धार्मिक शिक्षा के बिना मनुष्य अपने जीवन का विकास कर सकता है? क्योंकि लौकिक शिक्षा तो मनुष्य को जड़वाद की ओर अग्रसर करती है, अत: व्यक्ति को आत्मज्ञान नहीं हो सकता है। आध्यात्मिक शिक्षा के बिना मानव दानव का-सा व्यवहार करने लगेगा। उसे 'स्व' और 'पर' का अन्तर नहीं मालूम हो पायेगा। परिणामत: वह 'स्व' को ही जीवन का लक्ष्य मानकर उसके पीछे भागता रहेगा। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए लौकिक शिक्षा
के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा भी जरुरी है। ५. पाठ्यक्रम के सम्बन्ध में जैन शिक्षा के विषय अपने आप में पुष्ट एवं सर्वमान्य
हैं, लेकिन बौद्ध शिक्षा के विषयों को लेकर कहीं-कहीं विरोधाभास नजर आते हैं, यथा- एक ओर ‘विनयपिटक' में कहा गया है कि लोकायत नहीं सीखना चाहिए, जो सीखे उसे दुक्कट का दोष है, वहीं दूसरी ओर 'मिलिन्दपन्ह' में नागसेन के ज्ञान की प्रशंसा में कहा गया है कि वे तीनों वेद, निघण्टु, इतिहास, व्याकरण, लोकायत आदि शास्त्रों में पूर्ण निष्णात थे। जैन शिक्षा में चार वेदों ('ऋग्वेद', 'यजुर्वेद', 'सामवेद' और 'अथर्ववेद') का अध्यापन होता था जबकि बौद्ध शिक्षा में तीन वेदों ('ऋग्वेद', 'यजुर्वेद' और 'सामवेद') का ही अध्ययन कराने का उल्लेख है। __ जैन शिक्षा के अन्तर्गत ७२ कलाओं की संख्या स्वीकार की गयी है जबकि बौद्ध शिक्षा के अन्तर्गत ९६ कलाओं का समावेश है। बौद्ध शिक्षा प्रणाली में पुराण, इतिहास, वेद, व्याकरण, ज्योतिष, सांख्य योग, वैशेषिक आदि शास्त्रों को भी कलाओं के अन्तर्गत रखा गया है जो उचित नहीं जान पड़ता, क्योंकि कला का अर्थ होता है किसी भी कार्य को भली-भाँति कुशलतापूर्वक करना। जैन शिक्षा में ७२ कलाओं के अतिरिक्त इन सब विषयों को स्थान दिया गया है। जैन-परम्परा में महिलाओं के लिए ६४ कलाएँ बतायी गयी हैं, जबकि बौद्ध-परम्परा में महिलाओं के लिए अलग से कोई विधान नहीं है।
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