Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय
९७
१८. तं जहा - खंती, मुत्ती, अज्जवे, मद्दवे, लाघवे, सच्चे, संजमे तवे, चिचाए, बंभचेरवासे ।
'स्थानांग', १० /१६.
'समवायांग', १०/६१.
१९.
२०.
२१. कोहो पीइं पणासेइ, माणो विणयनासणो ।
२२.
उत्तमः क्षमामार्दवार्जवशौचसत्यसंयमतपस्त्यागाकिंचन्यब्रह्मचर्याणि धर्मः । 'तत्त्वार्थसूत्र', ९/६.
माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो । 'दशवैकालिक', ८/३७. उवसमेण हणे कोहं, माणं मद्दवया जिणे ।
मायं चऽज्जवभावेण, लोभं संतोसओ जिणे ।। वही, ८/३८.
२३. 'तत्त्वार्थसूत्र', पृ० २०८. २४.
२५. 'तत्त्वार्थसूत्र', पृ० २०९.
२६. वही, पृ० - २१०.
३३.
३४.
'आवश्यकसूत्र', क्षमापणा पाठ ।
२७. 'निशीथचूणि', ४६.
२८. 'प्रवचनसारोद्धार', द्वार २७०, गाथा १४९८.
२९. वही, पृ० २१०.
३०.
३१. वही, पृ० २८४.
३२.
'प्राचीन भारतीय संस्कृति में जैनधर्म का योगदान', पृ०-२८४.
'समवायांग', ७२/३५६. 'ज्ञाताधर्मकथा', १ / ९९.
'औपपातिकसूत्र', १०७.
३५. 'राजप्रश्नीयसूत्र, पृ० २०७
३६.
(१) ब्राह्मी, (२) यवनानी, (३) दोषउरिया, (४) खरोष्ट्रिका, (५) खरशाहिका (खरशापिता), (६) प्रभाराजिका, (७) उच्चत्तरिका, (८) अक्षरपृष्टिका, (९) भोगवतिका, (१०) वैनतिकी, (११) निन्हविका, (१२) अंकलिपि, (१३) गणितलिपि, (१४) गन्धर्वलिपि, (१५) आदर्शलिपि, (१६) माहेश्वरी, (१७) द्राविडी, (१८) पोलिंदी । 'समवायांग', १८
'समवायांग' और 'प्रज्ञापना' में वर्णित अट्ठारह लिपियों में कुछ अन्तर है । 'प्रज्ञापना' में अंतक्खरिया (अन्ताक्षरिका) लिपि का उल्लेख है जो 'समवायांग' में उपलब्ध नही होता है । 'समवायांग' में उच्चत्तरिया लिपि का उल्लेख है जो 'प्रज्ञापना' में अनुपलब्ध है। 'समवायांग' में खरसाहिया लिपि का उल्लेख मिलता है। इसके स्थान पर प्रज्ञापना में परिवर्तन के साथ 'पुक्खरसरिया' उल्लेख मिलता है।
'उपदेशपद' में आचार्य हरिभद्र ने लिपियों के नामों का उल्लेख किया है जिसमें एक नाम 'उड्डी' प्राप्त होता है। इसी प्रकार 'समवायांग' में 'दोउसरिया' लिपि
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