Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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८.
जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
जैन परम्परा में १८ प्रकार की लिपियों का उल्लेख मिलता है जबकि बौद्ध परम्परा में ६४ प्रकार की लिपियों की मान्यता है।
कलाओं की संख्या में जो भिन्नता देखने को मिलती है वह कोई आश्चर्य की बात नहीं है, क्योंकि कलाओं का सम्बन्ध तत्कालीन शिक्षण-पद्धति के साथ है। सभी का प्रायः एक-दूसरे में समावेश हो जाता है। मुख्य बात ध्यान देने योग्य यह है कि दोनों ही सम्प्रदायों में कलाओं का चयन इस दूरदृष्टिता से किया गया है कि जीवन के सभी अंग समाहित हो जाते हैं।
सन्दर्भ :
१.
२.
३.
४.
५.
Ancient Indian Education, p. 8-9
'तत्त्वार्थसूत्र', विवे०- पं० सुखलाल संघवी, १०/२.
वही,
पृ० १०.
चित्तमन्तमचितं वा परिगिज्झ किसामपि ।
अन्नं वा अणुजाणाई एवं दुक्खा णमुच्चई || 'सूत्रकृतांग, १/१/२ कामा दुरतिक्कमा जीवियं दुप्पडिबूहगं ।
काम कामी खलु अयं पुरिसे से सोयति जूरति तिप्पति परितिप्पति ।
'आचारांग',
२/९०.
-
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्ग: । 'तत्त्वार्थसूत्र', १ / १ .
तत्त्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम् । वही, १/२ .
'तत्त्वार्थाधिगम', १/१/३ 'द्रव्यसंग्रह', श्लोक ४२.
तत्त्वार्थसूत्र, पृ०-२.
'जैन धर्म में अहिंसा', पृ० - १८४.
६.
७.
८.
९.
१०.
११.
१२.
'प्रश्नव्याकरण', पृ० ६१८.
१३. तवेसु वा उत्तमं बंभचेरं । सूत्रकृताङ्गसूत्र, उद्धृत 'प्रश्नव्याकरण', हेमचन्द्रजी महाराज,
पृ०-७१६.
१४. मूर्च्छा परिग्रहः । 'तत्त्वार्थसूत्र', ७/१२.
१५.
कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुण्णं दलेज्ज इक्कस्स ।
वि सेन सतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया ।। 'उत्तराध्ययन', ८/१६. १६. मैत्रीप्रमोदकारुण्यमाध्यस्थ्यानि सत्त्वगुणाधिकक्लिश्यमानाविनेयेषु। 'तत्त्वार्थसूत्र', ७/६. १७. से उट्ठिएसु वा अणुट्ठिएसु वा सुस्सूसमाणेसु पवेदए संति विरंति उवसमं णिव्वाणं सोयवियं अज्जवियं मद्दवियं लाघवियं अणतिवित्तियं । 'आचारांग', १/६/५/१९६
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