Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय शरीर के शुभसूचक चिह्नों का ज्ञान, शकुन विज्ञान, स्वप्न और चिह्नों का विज्ञान, ग्रहों, भूकम्प, सूर्यग्रहण, चन्द्रग्रहण, गणित, किंकर्तव्य विज्ञान आदि विषयों का अध्ययन करते थे। क्षत्रिय हाथियों, अश्वों, धनुर्विद्या, रथों, खड्गविद्या, युद्धविद्या, दस्तावेजों का ज्ञान और मुद्रा विज्ञान का अध्ययन करते थे। अवशेष बचे हुए जैसे कृषि विज्ञान, वाणिज्य और पशुपालन की शिक्षा वैश्य और शूद्र प्राप्त करते थे।
पुन: उसी ग्रन्थ में कहा गया है कि राजा मिलिन्द ने उन्नीस प्रकार की शिक्षाएँ प्राप्त की थी, जो इस प्रकार हैं- श्रुति, स्मृति, सांख्य, योग, न्याय, वैशेषिक, गणित, संगीत, आयुर्वेद, चारों वेद, पुराण, इतिहास, ज्योतिष, माया (इन्द्रजाल), तर्कशास्त्र, सम्मोहन विद्या, युद्धकला, कविता (छन्द) और मुद्रा विज्ञान का पूर्ण ज्ञान प्राप्त किया था।१२४
'जातकों' में अट्ठारह प्रकार की शिक्षाएँ देखने को मिलती हैं जो इस प्रकार से है १२५ (१) वेद- 'जातकों' में तीन वेदों का उल्लेख आया है- 'ऋग्वेद', 'सामवेद' और
'यजुर्वेद'। विद्यार्थी इन्हीं तीनों वेदों का अध्ययन करते थे। १२६ प्राय: तीनों वेदों
में पारंगत ब्राह्मण होते थे।१२७ (२) वेदांग- वेद के साथ-साथ वेदांगों की भी शिक्षा दी जाती थी जिनकी संख्या
छह है- शिक्षा, कल्प, निरुक्ति, छन्द, व्याकरण और ज्योतिष।१२८ (३-६) मन्त्र-विद्या, १२९ भूतविद्या, १३° अंगविद्या, १३१ योगविद्या१३२ आदि। (७) स्मृति (८) मोक्ष ज्ञान। (९) क्रिया विधि। (१०) धनुर्वेद- इसके अन्तर्गत अक्षण वेध, बाल वेध तथा बारह प्रकार के शिल्प
का प्रदर्शन किया जाता था।१३३ (११) हस्तिशिक्षा- हाथी और अश्वों की चिकित्सा, उनकी देखभाल करना आदि
की भी शिक्षा दी जाती थी। जातकों में इस प्रकार की शिक्षा का उल्लेख है।१३४
(१२) कामतन्त्र।
(१३) लक्षण।
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