Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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८४ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन इन्द्रिय सुखों से लगाव अर्थात् विषय की कामना, दूसरों के प्रति बुरी भावनाओं अर्थात् द्रोह करना तथा हानि पहुँचाने वाले विचारों अर्थात् हिंसा को समूल छोड़ देने का निश्चय ही सम्यक्-संकल्प है। सम्यक्-दृष्टि सम्यक्-संकल्प में परिवर्तित होनी चाहिए।
(३) सम्यक-वचन- संकल्प केवल मनसा ही नहीं होना चाहिए बल्कि वचन में भी होना चाहिए। सम्यक्-संकल्प से व्यक्ति अपने विचारों को शुद्ध बनाता है तथा सम्यक-वचन से मनुष्य अपनी वाणी पर नियन्त्रण करना सीखता है। जिन वचनों से दूसरों के हृदय को चोट पहुंचे, जो वचन कटु हो, जिनसे दूसरों की निन्दा हो, व्यर्थ का बकवास हो उन वचनों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए। शत्रुता को कठोर शब्दों से नहीं बल्कि अवैर अर्थात् अच्छी भावनाओं से दूर किया जाता है। 'धम्मपद' में कहा गया है कि वैर की शान्ति कटुवचनों से नहीं होती प्रत्युत् अवैर से होती है। १०१ मन को शान्त करनेवाला एक हितकारी शब्द हजारों निरर्थक शब्दों से अच्छा है। जिस प्रकार सुन्दर वर्णयुक्त पुष्प गन्धवान होने से सफल होता है उसी प्रकार आचरण में प्रयोग करनेवाले की सुभाषित वाणी भी सफल एवं सार्थक होती है।१०२
(४) सम्यक्-कर्मान्त- जन्म-मरण, सद्गति-असद्गति आदि का कारण कर्म ही होता है। कर्म के कारण ही जीव इहलोक तथा परलोक में क्रमशः सुख-दुःख तथा स्वर्ग-नरक का गामी बनता है। हिंसा, चोरी, कामुकता, असत्य, अतिभोजन, सामाजिक मनोरंजनों में जाना आदि कार्यों का सर्वथा त्याग करना सम्यक्-कर्म है। ये सब नियम भिक्षुओं के लिए अनिवार्य बताये गये हैं। पाँच कर्मों का पालन करना प्रत्येक मनुष्य के लिए अनिवार्य है। पाँच कर्म जिन्हें पंचशील की संज्ञा दी गयी है वे हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और सुरा मैरेय पदार्थों का असेवन आदि।१०३ सामान्यजनों के लिए इनके अतिरिक्त और भी नियम बताये गये हैं, जैसे- अपनी सन्तान को अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा और पारिवारिक कर्तव्य करने योग्य बनाना चाहिए। छात्रों को विद्याध्ययन, गुरुजनों का आदर, बड़ों की आज्ञा का पालन और उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए। गुरुजनों को विद्यार्थियों से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए और उनमें सद्गुण उत्पन्न करके कला और विज्ञान में पारंगत करना चाहिए। पति को पत्नी का आदर करना चाहिए, उसके प्रति वफादार रहना चाहिए। पत्नी को भी पति से प्रेमपूर्ण व्यवहार करना चाहिए। ये सामान्यजनों के लिए सामान्य नियम हैं।१०४
(५) सम्यक्-आजीविका- सम्यक्-आजीविका का अर्थ होता है- शुद्ध उपायों से जीविका का उपार्जन करना। अर्थात् मनुष्य को इस प्रकार की आजीविका अर्जित करनी चाहिए जिनसे दूसरे प्राणियों को न किसी प्रकार का कष्ट पहुंचे और न उनकी
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