Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
सूत्रछेदन- सूत्र का छेदन करना इस कला का विषय है। 'समवायांग' में नाल छेदन, खेत जोतना, आदि को एक ही कला के अन्तर्गत माना गया है।६८
खेत जोतने की कला- अनाज पैदा करने के लिए खेत जोतने की कला वट्टखेडं है।
नालछेदन- कमल के नाल का छेदन कर नली बनाने की कला इसके अन्तर्गत आती है।
पत्रछेदन-पत्रों या पत्तों या वृक्षांग को भेदने की कला इसका विषय है।
कड़ाछेदन- युद्ध में सैनिकों को बेधने की कला इसका विषय है। किन्तु 'समवायांग' में पत्रच्छेदन कला के समान ही कला-कुण्डल आदि का छेदन करना इस कला का विषय बताया गया है।६१
सजीव- मृत अथवा मृततुल्य (मूर्च्छित) व्यक्ति को जीवित करना सजीव कला कहलाती है। 'समवायांग' में सजीव और निर्जीव को एक ही कला के अन्तर्गत माना गया है।७०
निर्जीव- जीवित को मृत तुल्य करने की कला निर्जीव कला कहलाती है।७१
पक्षी की बोली पहचानने की कला- पक्षियों की बोली पहचानना अर्थात् उनके शब्द से शुभ-अशुभ जानने की कला इसके अन्तर्गत आती है।
इस प्रकार जैन-साहित्य में ७२ कलाओं का वर्णन अनेक स्थानों पर किया गया है। यद्यपि हरिभद्रसूरि २ ने ८९ कलायें बतायी हैं लेकिन जैन ग्रन्थों में सामान्य रूप से पुरुषों के लिए ७२ तथा स्त्रियों के लिए ६४ कलाओं का वर्णन आया है। महिलाओं की चौसठ७३ कलाओं के नाम इस प्रकार से हैं(१) नृत्य
(२) औचित्य (३) चित्र (४) वादित्र (५) मन्त्र
(६) तन्त्र (७) ज्ञान (८) विज्ञान
(९) दम्भ (१०) जलस्तम्भ (११) गीतमान (१२) तालमान (१३) मेघवृष्टि (१४) जलवृष्टि (१५) आरामरोपण (१६) आकारगोपन (१७) धर्मविचार (१८) शकुनविचार (१९) क्रियाकल्प (२०) संस्कृतजल्प (२१) प्रासाद-नीति
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