Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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७४ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन करना इस कला का विषय है।
काकणीलक्षण- काकिनीरत्न के लक्षण को जानना इस कला का विषय है। किन्तु प्राकृत शब्द महार्णव में काकिन का अर्थ कौड़ी और सिक्कों से लगाया गया है। अत: यहाँ काकिनी लक्षण का तात्पर्य कौड़ी अथवा रत्न विशेष की जानकारी होना चाहिए।
__ वास्तुविद्या- वास्तुविद्या, मकान-दुकान आदि इमारतों के शुभ-अशुभ लक्षण जानने की विद्या वस्तुविद्या है। वास्तुकला के अन्तर्गत नगरमान, वास्तुमान, स्कन्धावार निवेशम आदि का आभास होता है।६२ स्कन्धावारमान, नगरमान, वास्तुमान, स्कन्धावार निवेशम, नगर निवेशम का आशय शिविर आदि को बसाने एवं उसके योग्य भूमि, गृह आदि का मान प्रमाण निश्चित करना है।६३
खंदारमान- सेना के पड़ाव के प्रमाण आदि को जानना, जैसे- लम्बाई, चौड़ाई तथा तविषयक अन्य प्रकार की जानकारी इस कला के अन्तर्गत है।
नगरमान- नया नगर बसाने आदि की कला नगरमान कला का विषय क्षेत्र है। “समवायांग' में स्कन्धावारमान, नगरमान, वास्तुमान, स्कन्धावर निवेशम तथा नगरनिवेशम को अलग-अलग कला के रूप में गिनाया गया है।
व्यूह- युद्ध के समय व्यूह रचना बनाना इस कला के अन्तर्गत आता है।
प्रतिव्यूह-विरोधी के व्यूह के सामने प्रत्युत्तर में अपनी व्यूह रचना प्रतिव्यूह कला है।
चार- तीव्र गति से सैन्य संचालन करना इस कला के अन्तर्गत आता है। चार, प्रतिचार, व्यूह और प्रतिव्यूह आदि वे विधाएं हैं जिनके द्वारा सेना को आगे बढ़ाना, शत्रु के चाल को विफल करना तथा व्यूह तोड़ने योग्य सेना को बनाना आदि कार्य सम्पन्न किये जाते हैं।
प्रतिचार- शत्रु सेना के समक्ष अपनी सेना को रणक्षेत्र में उतारने की कला प्रतिचार कहलाती है।
चक्रव्यूह-विरोधी के समक्ष चाक के आकार के समान मोर्चा बनाना चक्रव्यूह कला है।
गरुड़व्यूह- गरुड़ के आकार में अपनी सेना का व्यूहन करना गरुड़व्यूह कला है। शकटव्यूह- गाड़ी के आकार में सेना को स्थापित कर सज्जित करना शकटव्यूह
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