Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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७२ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
अन्नविधि- अन्न उत्पन्न करने की कला। इस कला के अन्तर्गत भोजन बनाने और भोज्य पदार्थ सम्बन्धी सभी बातों का ज्ञान कराया जाता था। स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्नविधि, पान-विधि, शयन-विधि आदि का उल्लेख विभिन्न जैनसूत्रों में आया है।५३
पानविधि- पानी को उत्पन्न करने तथा शुद्ध एवं उष्ण करने की कला पानविधि कला है। पेय पदार्थ सम्बन्धी सभी बातों की जानकारी इसके अन्तर्गत आती है।
वस्त्रविधि- नवीन वस्त्र बनाना, रंगना, सीना और पहनने की कला इसमें सन्निहित है।
विलेपनविधि- विलेपन की वस्तु को पहचानना, तैयार करना तथा लेप आदि की कला इसके अन्तर्गत आती है।
शयनविधि- शय्या-सम्बन्धी सभी बातों का ज्ञान इसमें सम्मिलित है। जैसेशय्या बनाना, शयन करने की विधि को जानना आदि। 'कुवलयमालाकहा' में शयन-विधि के साथ-साथ आसन-विधि का भी उल्लेख है।
आर्याविधि- आर्या एक प्रकार का छन्द है जिसे पहचानने और बनाने की कला आर्याविधि है। इस कला के अन्तर्गत आर्या, प्रहेलिका, मागन्धिका आदि का ज्ञान कराया जाता था।१५
प्रहेलिका- पहेली जानने और बनाने की कला प्रहेलिका है।
मागधिका- मागधी भाषा और साहित्य का ज्ञान अर्थात् मगध देश की भाषा को जानना तथा गाथा बनाना मागधिका कला है।
गाथा- छन्द अथवा श्लोक रचना-सम्बन्धी कला का ज्ञान तथा प्राकृत भाषा में गाथा आदि बनाना इसके अन्तर्गत आता है। वैदिककाल में भी गाथा- गाथापति,५६ ऋजुगाथा" आदि का उल्लेख प्राप्त होता है।
गीत- गीति छन्द बनाना, काव्यों की रचना करना और उनका अध्ययन करना।
श्लोक- साहित्य के अन्तर्गत पद्य श्लोक (अनुष्टुप छन्द) बनाना तथा उसकी जानकारी रखना। इसका वर्णन समवायांग में भी आया है।५८
रजतकला-चांदी के आभूषण बनाना तथा पहनना आदि रजतकला के अन्तर्गत आता है।
सुवर्णकला- सुवर्ण के आभूषण बनाना एवं पहनना आदि सुवर्णकला है।
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