Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
रिभित नाट्य- वह नाट्य या नृत्य जिसमें संगीत के साथ नाचा जाता है। आरभट नाट्य- वह नाट्य या नृत्य जिसमें संकेतों से भावाभिव्यक्ति करते हुये नाचा जाता है।
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भषोल नाट्य- वह नाट्य या नृत्य जिसमें झुककर या लेटकर नाचा जाता है। गायन के चार प्रकार
उत्क्षिप्तक- गायन का वह प्रकार जिसमें नाचते हुये गाया जाता है।
पत्रक - वह गायन जिसके अन्तर्गत पद्य-छन्दी का गायन करना या उत्तम स्वर में छन्द बोला जाता है।
मन्द्रक- वह गायन जिसमें मन्द मन्द स्वर में गाया जाता है।
रोविन्दक- गायन का वह प्रकार जिसमें धीरे-धीरे स्वर को तेज करते हुये गाया
जाता है।
अभिनय के प्रकार
दान्तिक वह नाटक जिसमें किसी घटना विशेष पर आधारित अभिनय किया जाता है।
प्रातिश्रुत- ऐतिहासिक कथा पर आधारित नाटक में अभिनय करना । जैसे- रामायण, महाभारत आदि ।
सामान्यतोविनिपातिक ऐतिहासिक कथा पर आधारित नाटक में राजा- - मंत्री आदि का अभिनय करना।
लोकमध्यावसित- नाटक में मानव जीवन की विभिन्न अवस्थाओं को अभिनित
करना।
'राजप्रश्नीयसूत्र' में बत्तीस प्रकार की नाट्य विधियों का वर्णन है । ४३ इसी प्रकार 'कुवलयमाला' में आये ७२ प्रकार की कलाओं में तथा 'कादम्बरी' में चन्द्रापीठ द्वारा विभिन्न प्रकार की विद्याओं एवं कलाओं में पारंगत होने के सन्दर्भ में नाट्यशास्त्र का भी वर्णन किया गया है। ४४
गीत - गायन कला अत्यधिक प्राचीनकाल से चली आ रही है। गायन के अन्तर्गत स्वर, ताल और लय की प्रधानता होती है। 'समवायांग', 'कल्पसूत्र' टीका एवं ' कादम्बरी' आदि ग्रन्थों में भी गीत, वाद्य, नृत्य आदि कलाओं का उल्लेख आया है जिन्हें तत्कालीन
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