Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
View full book text
________________
६८ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन के अनुकूल और निष्ठा से ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। लौकिक शिक्षा का उद्देश्य
भौतिक सामग्रियों को एकत्रित करना और उनको सुख का साधन मानकर उनमें आसक्त रहना लौकिक शिक्षा का उद्देश्य है। लेकिन इससे शाश्वत सुख की उपलब्धि नहीं हो सकती है। मानव अपने सुख के लिए कितनी भी भौतिक उपलब्धि प्राप्त कर ले फिर भी उसकी इच्छायें कभी भी शान्त नहीं हो पाती हैं। मानव को जीवन धारण करने के लिए जिस प्रकार रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता है, उसी प्रकार जीवन की सुरक्षा के लिए शारीरिक स्वास्थ्य, मानसिक शुद्धि और आजीविका के साधनों की आवश्यकता है। यही कारण है कि प्राचीनकाल से मानव को सुसंस्कारी बनाने के लिए तथा जीविकोपार्जन की योग्यता अर्जित करने के लिए कलाओं का गहराई से अध्ययन करने पर विशेष जोर दिया जाता रहा है। इन कलाओं के अध्ययन के पीछे एक ही लक्ष्य निहित है और वह है लोक-व्यवहार में निर्वाह करने की क्षमता तथा प्राकृतिक पदार्थों को अपने लिए उपयोगी बनाने की योग्यता अर्जित करना। लौकिक शिक्षा के विषय
पुरुषों के लिए बहत्तर एवं महिलाओं के लिए चौंसठ कलाओं का अध्ययन लौकिक शिक्षा के अन्तर्गत आता है। कलाओं का अध्ययन मानव के ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों के पूर्ण विकास के लिए अत्यन्त उपयोगी है। मानसिक विकास के साथ-साथ अगर शारीरिक विकास न हो तो फिर अध्ययन कैसा? कलाओं की महत्ता पर प्रकाश डालते हए पं०हीरालाल जैन ने बताया है कि जैन धर्म में गृहस्थधर्म की व्यवस्थाओं द्वारा उन सब प्रवृत्तियों को यथोचित स्थान दिया गया है जिनके द्वारा मनुष्य सभ्य एवं शिष्ट बनकर अपनी व अपने कुटुम्ब, समाज एवं देश की सेवा करता हुआ उन्नत बन सके।३० जैन आगमों में बालकों को उनके शिक्षण काल में शिल्पों एवं कलाओं की शिक्षा पर जोर दिया गया है। गृहस्थों के लिए जो षट्कर्म बताये गये हैं उनमें असि, मषि, कृषि, विद्या, वाणिज्य के साथ-साथ शिल्प का भी विशेष उल्लेख है।३१ ।
'समवायांग', ३२ 'ज्ञाताधर्मकथा',३३ औपपातिकसूत्र',३४ 'राजप्रश्नीयसूत्र'३५ आदि ग्रन्थों में ७२ कलाओं का वर्णन आया है, किन्तु सभी में कुछ न कुछ अन्तर देखने को मिलता है। ‘ज्ञाताधर्मकथा' के अनुसार निम्नलिखित ७२ कलायें हैंबहत्तर कलायें
लेख- लिखने की कला को लेख कहते हैं। सुन्दर और स्पष्ट लिपि द्वारा अपने भावों को कलात्मक ढंग से व्यक्त करना लेखन कला है। जैन ग्रन्थों में ब्राह्मी२६ आदि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org