Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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६६ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन ... जैन परम्परा में अपराधी को क्षमा करना और स्वयं के अपराधों के लिए जिसके प्रति अपराध किया गया है उससे क्षमायाचना करना साधक का परम कर्तव्य माना गया है। जैन साधक का प्रतिदिन यह उद्घोष होता है कि मैं सभी प्राणियों को क्षमा करता हूँ और सभी प्राणी मेरे अपराधों के लिए मुझे क्षमा करें। सभी प्राणियों से मेरी मित्रता है, किसी से मेरा वैर नहीं है।२४ ____ मार्दव- ऐसा आचरण जिसमें व्यक्ति अपने को दूसरों से बड़ा न समझे व जिसमें अपनी प्रशंसा और सम्मान की चाह न हो, वह मार्दव धर्म का द्योतक है। तत्त्वार्थसूत्र में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है- 'चित्त में मृदुता और व्यवहार में भी नम्रवृत्ति का होना मार्दव गुण है। इसकी सिद्धि के लिए जाति, कुल, रूप, ऐश्वर्य, विज्ञान (बुद्धि), श्रुत (शास्त्र) लाभ (प्राप्ति), वीर्य (शक्ति) के विषय में अपने को बड़ा या ऊँचा मानकर गर्वित न होना और इन वस्तुओं की विनश्वरता का विचार करके अभिमान के कांटे को निकाल फेंकना ही मार्दव धर्म है। २५
आर्जव- भाव की विशुद्धि आर्जव कहलाता है जिसमें विचार, भाषण और व्यवहार की एकता का होना आवश्यक है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि आचरण में मन, वचन और कर्म की एकरूपता होना आर्जव धर्म का द्योतक है, परन्तु इसकी प्राप्ति के लिए मन में भावों की निर्मलता और अभिप्राय का शुभ होना आवश्यक है।
शौच- साधारणतया शौच का अर्थ शुद्धता या सफाई से ग्रहण किया जाता है, लेकिन यहाँ शौच का अर्थ केवल बाहरी या शारीरिक शुद्धता से नहीं बल्कि आत्मिक शुद्धि से है। इतना ही नहीं बल्कि धर्म के साधनों तथा शरीर तक में भी आसक्ति न रखना शौच है।
सत्य- सत्पुरुषों के लिए हितकारी व यथार्थ वचन बोलना ही सत्य है। जो वास्तविक रूप में है उसे वैसा ही जानना, वैसा ही मानना, वैसा ही कहना और उसको वैसा ही आचरण में लाना सत्य धर्म है।
संयम- मन, वचन और काय का नियमन करना संयम है। पाँच इन्द्रियों का निग्रह, पाँच अव्रतों का त्याग, चार कषायों का जप तथा मन, वचन और काय की विरति, ये सत्रह प्रकार के संयम हैं।
तप-तप जैन-साधना का प्राण है। तप को परिभाषित करते हुए पं० सुखलाल संघवी ने कहा है- मलिन वृत्तियों को निर्मूल करने के निमित्त अपेक्षित शक्ति की साधना के लिए किया जानेवाला आत्मदमन तप है। १५ इसे दूसरी भाषा में इस प्रकार
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