Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय अट्ठारह प्रकार की लिपियों का उल्लेख मिलता है। प्राचीन काल में लेख का आधार पत्र, वल्कल, काष्ठ, दन्त, लोहा, ताम्र, रजत, पाषाण आदि था जिन पर उत्कीर्ण कर, भेदकर, जलाकर, ठप्पा लगाकर अक्षरों को अंकित किया जाता था।३७ जैन ग्रन्थ 'समवायांग' एवं 'कुवलयमाला' में भी इस कला का उल्लेख है। 'कामसूत्र' में वर्णित ६४ कलाओं में लेहं (आलेख) कला का भी उल्लेख हुआ है।२८
___ गणित- भारत में प्राचीनकाल से ही गणितशास्त्र का विशेष महत्त्व रहा है। भगवान् महावीर ने भी गणित एवं ज्योतिषशास्त्र में निपुणता प्राप्त की थी।३९ आदि तीर्थङ्कर ऋषभदेव ने अपनी पुत्री सुन्दरी को गणित की शिक्षा दी थी।४० 'समवायांग' एवं 'कुवलयमाला' में भी गणित की शिक्षा को विषयान्तर्गत लिया गया है। वैदिक ग्रन्थ 'छान्दोग्योपनिषद्' में वेद, पुराण, व्याकरण आदि के साथ-साथ राशिविद्या का भी उल्लेख आया है जिसका अभिप्राय गणित विद्या से लगाया जा सकता है।०१
रूप- किसी भी वस्तु या रूप को सजाने की कला रूपकला है।।
नृत्य- इस कला के अन्तर्गत नाटक लिखने और नाटक अभिनीत करने की प्रक्रिया का समावेश है। इसमें सुर, ताल आदि की गति के अनुसार शिक्षा दी जाती थी। प्राचीनकाल में नाट्य, नृत्य, गीत, वाद्य, स्वरगत, पुष्करगत, समताल आदि को संगीत के अन्तर्गत माना जाता था और आज भी माना जाता है। 'स्थानांगसूत्र'४२ में वाद्य, नाट्य, गायन और अभिनय के चार-चार प्रकार बताये गये हैंवाध के चार प्रकार
तत- तार अथवा ताँत का जिसमें उपयोग होता है, वे तत कहलाते हैं। जैसेवीणा, सारंगी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
वितत- चमड़े से बना हुआ वाद्य वितत कहलाता है। जैसे- ढोल, तबला, नगारा, मृदंग, डफ, खैजड़ी आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
घन- परस्पर आघात से बजानेवाला वाद्य घन कहलाता है। जैसे- कांस्य ताल, झाँझ, मजीरा आदि इसके अन्तर्गत आते हैं।
शुषिर- जिसका भीतरी भाग पोला हो और जिसमें वायु का उपयोग होता हो शुषिर कहलाता है। जैसे- बाँसुरी, अलगोजा, शहनाई, शंख, हारमोनियम आदि। नाट्य (नृत्य) के चार प्रकार
अंचित नाट्य- वह नाट्य या नृत्य जिसमें ठहर-ठहर कर नाचा जाता है।
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