Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय
७३ चूर्णकला- चूर्ण, गुलाल, अबीर आदि बनाना तथा उनका उपयोग करना चूर्णकला है।
आभरणविधि- वस्त्र तथा आभूषण निर्माण एवं धारण करने की कला इसमें सन्निहित है। समवायांग में भी इस कला का वर्णन आया है।५९
तरुणीप्रतिक्रम- युवतियों के वर्ण परिवर्तन आदि का परिज्ञान करना तरुणी प्रतिक्रम है। दूसरे शब्दों में तरुण व्यक्तियों से मित्रवत व्यवहार एवं प्रसत्र करने की कला को तरुणीप्रतिक्रम कहते हैं।६°
स्त्रीलक्षण- स्त्री के लक्षण को जानना अर्थात् स्त्रियों की जाति तथा उनके गुण-दोषों की पहचान इस कला के अन्तर्गत आते हैं। जैन-ग्रन्थों में विभिन्न प्रकार के लक्षणों और चिह्नों के ज्ञान कराये जाने का उल्लेख मिलता है, जैसे- स्त्री, पुरुष, हय, गज, गो, मेष, कुक्कुट, चक्र, छत्र, दण्ड, असि, मणि, काकिनी आदि के लक्षणों का ज्ञान कराना।६१
पुरुषलक्षण- पुरुष के लक्षण को जानना अर्थात् पुरुष वर्ग की जाति और उनके गुण-दोष की विशिष्ट जानकारी रखना इस कला का विषय है।
अश्वलक्षण- अश्व के लक्षण को जानना अर्थात् अश्वों की जाति एवं उनके अच्छे-बुरे लक्षणों की जानकारी करना अश्वलक्षण कला है।
गजलक्षण- हाथी के लक्षण, जाति और उनके भले-बुरे नस्लों की जानकारी करना इस कला का विषय है।
गोलक्षण- गाय-बैल के लक्षण, जाति तथा उसके अच्छे-बुरे नस्लों की जानकारी रखना गोलक्षण कला है।
कुक्कुटलक्षण- कुक्कुट अर्थात् मुर्गों की पहचान तथा शुभ-अशुभ लक्षणों की जानकारी हासिल करना इस कला के अन्तर्गत आता है।
छत्रलक्षण- क्षत्र-सम्बन्धी शुभ-अशुभ की जानकारी रखना क्षत्रलक्षण कला है।
दंडलक्षण- दण्ड-सम्बन्धी विषयों की जानकारी रखना दंडलक्षण कला है।
असिलक्षण- तलवार, खड्ग आदि चलाने की कला तथा उसकी परीक्षा-सम्बन्धी विशिष्ट जानकारी प्राप्त करना इस कला के अन्तर्गत आता है।
मणिलक्षण- मणि, मुक्ता, रत्न आदि की विशिष्ट मणियों की जानकारी प्राप्त
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