Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध धर्म-दर्शन तथा उनके साहित्य हो। वस्तु में क्षण-क्षण परिवर्तन होता रहता है। जो वस्तु आज है वह कल नहीं होगी। जिस प्रकार एक प्रवाह दूसरे को जन्म देती है, उसी प्रकार एक क्षण दूसरे क्षण को जन्म देता है। संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य धर्मों का संघातमात्र है। यही अनित्यवाद आगे चलकर क्षणभंगवाद के रूप में परिवर्तित हो जाता है। क्षणभंगवाद में वस्तु केवल अनित्य ही नहीं है, अपितु उसकी सत्ता क्षणभर के लिए ही होती है। संसार की ऐसी कोई भी वस्तु नहीं जो पविर्तनशील या विनाशशील न हो। परिवर्तित होना जागतिक वस्तुओं की विशेषता है। जो देखने में स्थायी या नित्य प्रतीत होता है वह भी नश्वर है, परिवर्तनशील है। बुद्ध ने प्रत्येक वस्तु को अनित्य और अस्थिर माना है। अनित्यतावाद
और क्षणिकवाद में साम्य इन बातों से है कि दोनों ही परिवर्तन को मान्यता देते हैं, दोनों ही वस्तु के आदि एवं अन्त में विश्वास करते हैं। किन्तु इस बात के कारण दोनों में भेद है कि अनित्यवाद में जहाँ परिवर्तन का कोई समय निश्चित नहीं है वहाँ क्षणिकवाद में क्षण-क्षण परिवर्तन होता रहता है। क्षणिकवाद के समर्थन में परवर्ती बौद्धों ने अपने ढंग से तर्क प्रस्तुत किया है। उन लोगों ने अस्तित्व या सत्ता को परिभाषित करते हुये कहा है कि 'अर्थक्रियाकारित्वम् सत्।' अर्थात् अस्तित्व उसी का है जिसमें कार्य करने की क्षमता है। इसे दूसरे शब्दों में इस प्रकार भी कह सकते हैं कि जिसमें कार्य करने की या परिवर्तन करने की क्षमता है उसी का अस्तित्व है। अत: कहा जा सकता है कि अस्तित्व का अर्थ स्थायित्व नहीं बल्कि परिवर्तनशीलता है। अपनी इस मान्यता के समर्थन में बुद्ध के शिष्यों ने बीज का उदाहरण प्रस्तुत किया है। बीज में अंकुर देने, पौधा उत्पन्न करने की क्षमता है इसलिए उसका अस्तित्व है, किन्तु बीज में स्थायित्व नहीं है वह परिवर्तित होता रहता है, इसलिए बीज को स्थायी नहीं माना जा सकता। यदि इसे स्थायी मान लिया जाता है तो इसका अभिप्राय होगा कि प्रत्येक क्षण बीज में समान रूप से उत्पन्न करने की क्षमता है, अन्यथा इसका स्थायित्व भंग होगा। किन्तु ऐसा नहीं होता। कोई भी बीज समान रूप से उत्पन्न करने की क्षमता नहीं रखता, क्योंकि बीज जब घर में रखा हुआ होता है तब उससे पौधा नहीं निकलता। बीज से पौधा तब उत्पन्न होता है जब उस बीज को मिट्टी में डाला जाता है। घर में बीज से पौधा नहीं निकलता और मिट्टी में बीज डालने पर बीज से पौधा का अंकुरित होना बीज में होनेवाले परिवर्तन को बताता है। यदि कोई ऐसा कहे कि बीज चाहे घर में रहे अथवा खेत में पौधा उत्पन्न करने की क्षमता उसमें सदा बनी रहती है अर्थात् वह किसी खास क्षण में नहीं बल्कि हमेशा ही स्थायी ढंग से पौधे को उत्पन्न कर सकता है तो यह क्षणिकवादियों को मान्य नहीं होगा। उनके अनुसार यदि बीज में पौधा पैदा करने की क्षमता स्थायी रूप से रहती और किसी भी क्षण वह पौधा पैदा कर सकता तब तो उसे मिट्टी में डालने की आवश्यकता ही नहीं
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