Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध धर्म-दर्शन तथा उनके साहित्य ४७ भारतीय भाषाओं में उपलब्ध नहीं होते, बल्कि विभिन्न विदेशी भाषाओं में भी विपुल बौद्ध साहित्य उपलब्ध हैं। यद्यपि बुद्ध ने अपने जीवनकाल में न तो किसी ग्रन्थ की रचना की और न करवायी ही, क्योंकि वे एक सच्चे धर्मोपदेशक थे और मानव को सही मार्ग दिखाना ही उनका एकमात्र उद्देश्य था। तत्कालीन समाज की भाषा अर्द्धमागधी और पालि थी। बुद्ध अपना उपदेश पालि भाषा में किया करते थे। बुद्ध के परिनिर्वाण के पश्चात् उनके प्रमुख शिष्यों ने उनके वचनों का संगायन करना आवश्यक समझा। इस क्षेत्र में प्रथम प्रयास ई०पू० ४८० में महाकाश्यप की अध्यक्षता में एक धर्मसंगीति बुलायी गयी जो बुद्धपरिनिर्वाण के चौथे मास में सम्पन्न हुई।८१ इसमें उपालि ने विनय-सम्बन्धी तथा आनन्द ने धर्म-सम्बन्धी पाठ किया।८२ उस सभा में ५०० भिक्षुओं ने भाग लिया था। संगायन का दूसरा चरण भगवान् के परिनिर्वाण के १०० वर्ष बाद दूसरी धर्मसंगीति के रूप में वैशाली में रखा गया।८३ इसमें ७०० भिक्षुओं ने भाग लिया। यह धर्मसंगीति आठ महीने तक चली। लेकिन युवानच्यांग के अनुसार यह सभा बुद्ध परिनिर्वाण के ११० वर्ष बाद हुई।८४ यह सभा महास्थविर रैवत की अध्यक्षता में विनय से सम्बन्धित कुछ विवादग्रस्त प्रश्नों के निर्णय के लिए बुलायी गयी थी। वैशाली संगीति के बाद तीसरी संगीति सम्राट अशोक के समय बुलायी गयी जो बुद्ध परिनिर्वाण के २३६ वर्ष बाद पाटलिपुत्र में सम्पन्न हुई।८५ यह सभा बौद्ध विद्वान् मोग्गालिपुत्र के सभापतित्व में सम्पन्न हुई। उस समय तक बौद्ध संघ १८ सम्प्रदायों में विभक्त हो चुका था और मोग्गालिपुत्र ने मिथ्यावादी १८ बौद्ध सम्प्रदायों का निराकरण करते हुए ‘कथावत्थु' नामक ग्रन्थ की रचना की, जिसे 'अभिधम्मपिटक' में स्थान मिला।८६ यह सभा नौ महीने तक चली थी। बौद्ध धर्म की चौथी संगीति सम्राट कनिष्क के समय हुई जिसमें कनिष्क ने बौद्ध संघ के अट्ठारह सम्प्रदायों में व्याप्त आपसी भेद को मिटाने का प्रयत्न किया था। साथ ही उस सभा में त्रिपिटक पर टीकाएँ भी लिखी गयीं। कनिष्क के समय ही सम्पूर्ण पालि त्रिपिटक का संस्कृत अनुवाद किया गया। इस प्रकार चार संगीतियों के माध्यम से बौद्ध साहित्य का संकलन किया गया है।
जिस प्रकार वैदिक परम्परा के मूल साहित्य वेद हैं, जैन परम्परा के मूल साहित्य द्वादशांगी हैं, उसी प्रकार बौद्ध परम्परा के मूल साहित्य त्रिपिटक हैं जिनके नाम हैं'विनयपिटक', 'सुत्तपिटक' और 'अभिधम्मपिटक'। भगवान् बुद्ध की सम्पूर्ण वाणी इन्हीं तीनों पिटकों में संकलित हैं जिनका विभाजन इस प्रकार किया गया है(१) 'विनयपिटक' को तीन विभागों में बांटा गया है- 'दूतविभंग', 'खंदक', 'परिवार'। (२) 'सुत्तपिटक' पाँच भागों में विभक्त है- 'दीघनिकाय', 'मज्झिमनिकाय', 'संयुक्तनिकाय',
'अंगुत्तरनिकाय' और 'खुद्दकनिकाय'। पुनः ‘खुद्दकनिकाय' के पन्द्रह विभाग किये
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