Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध शिक्षा दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
गये हैं, जिनमें 'खुद्दकपाठ', 'धम्मपाठ', 'उदान', 'इतिवृत्तक', 'सुत्तनिपात', 'विमानवत्थु', 'पैतवत्थु', 'थेरगाथा', 'थेरीगाथा', 'जातक', 'निद्देश', 'पटिसम्भिधा', 'अवदान', 'बुद्धवंस', 'धम्मपिटक' आदि ग्रन्थ आते हैं।
(३) 'अभिधम्मपिटक' जो सात उपविभागों में विभक्त है, यथा- 'धम्मसंगणी', 'विभंग', 'धातुकथा', 'पुग्गलपञ्जति', 'कथावत्थु', 'यमक' और 'पट्ठान'। भगवान् बुद्ध के सम्पूर्ण उपदेश इन तीनों भागों में विभाजित - साहित्य में आ जाते हैं। शिक्षा से सम्बन्धित ग्रन्थ
विनयपिटक
‘विनयपिटक' बौद्ध साहित्य में बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। इसे बौद्ध संघ का संविधान कहते हैं क्योंकि इसमें बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियों के आचार और अनुशासन से सम्बन्धित नियम एकत्रित किये गये हैं। 'विनयपिटक' के संकलन के विषय में विद्वानों में मतभेद देखने को मिलता है। जैसा कि 'विनयपिटक' में महाकाश्यप ने भिक्षुओं को सम्बोधित करते हुए कहा है- 'आयुष्मानों! आज हमारे सामने अधर्म बढ़ रहा है, धर्म का ह्रास हो रहा है। अविनय बढ़ रहा है, विनय का ह्रास हो रहा है। आओ आयुष्मानों! हम धर्म और विनय का संगायन करें। ८७ इससे पता चलता है कि 'विनयपिटक' का संकलन प्रथम धर्मसंगीति में 'सुत्तपिटक' के समय हुआ, किन्तु कुछ पश्चिमी विद्वानों, जैसे- कर्न, पूसां आदि ने 'विनयपिटक' को 'सुत्तपिटक' से पूर्व तथा कुछ ने उसके बाद का संकलन माना है, परन्तु भारतीय विद्वान् भरत सिंह उपाध्याय ने दोनों की शैली की प्राचीनता के आधार पर दोनों को समकालीन माना है। ८८ चीनी भाषा में इस ग्रन्थ के छः संस्करण मिलते हैं। ८९ इसके अतिरिक्त जापानी, सिंघली, चीनी, तिब्बती, बर्मी, स्यामी आदि भाषाओं में भी त्रिपिटक की टीकाएँ मिलती हैं। हिन्दी भाषा में महापण्डित राहुल सांकृत्यायन ने 'विनयपिटक' का अनुवाद किया है।
'विनयपिटक' तीन भागों में विभक्त है- 'सुत्तविभंग', 'खन्दक' और 'परिवार' । पुनः सुत्तविभंग को दो भागों में विभाजित किया गया है— 'पाराजिक' और 'पाचित्तिय' । किन्तु भिक्षु और भिक्षुणी संघों को उद्देश्य में रखकर उसे 'महाविभंग' यानी भिक्षु विभंग और भिक्षुणी विभंग जिसे भिक्खुपातिमोक्ख तथा भिक्खुणीपातिमोक्ख भी कहते हैं के रूप में विश्लेषित किया गया है। पातिमोक्ख 'विनयपिटक' का मुख्य सार है। भिक्षुओं और भिक्षुणियों द्वारा किये जानेवाले अपराध उनकी गम्भीरता के अनुसार विभाजित किये गये हैं। सबसे बुरे पाप पाराजिक शीर्षक के अन्तर्गत आते हैं, जिसका दण्ड निर्धारित किया गया था- संघ से निष्कासन । ब्रह्मचर्य का उल्लंघन, चोरी, हत्या, चमत्कार करने
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