Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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तृतीय अध्याय जैन एवं बौद्ध शिक्षा के उद्देश्य एवं विषय
___ मानव-व्यक्तित्व का विकास शिक्षा पर आधारित होता है, किन्तु शिक्षा के उद्देश्यों को लेकर विद्वत्जनों में मतभेद पाया जाता है। कुछ लोग शिक्षा का लक्ष्य विद्या की प्राप्ति को मानते हैं तो कुछ लोग चरित्र का उन्नयन तथा मानव-जीवन का सर्वाङ्गीण विकास बताते हैं। लेकिन सही अर्थों में शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को विषय का ज्ञाता बनाने के अतिरिक्त मानसिक, शारीरिक व नैतिक- सभी दृष्टियों से योग्य, सदाचारी व स्वावलम्बी बनाना है। दूसरे शब्दों में शिक्षा का मूल उद्देश्य ज्ञान द्वारा बुद्धि-विकास अथवा विवेक जागृत करना है जिससे मनुष्य प्रत्येक विषय पर स्वयं निर्णय ले सके और उसका दृढ़ता से पालन कर सके। शिक्षा मानव का अन्तर्मुखी एवं बहिर्मुखी विकास करती है। मनुष्य के सर्वाङ्गीण विकास के लिए शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा मानव का भौतिक, आध्यात्मिक, मानसिक, बौद्धिक, आत्मिक, चारित्रिक, सामाजिक विकास सम्भव है। व्यक्ति में आत्मविश्वास, विनम्रता, धैर्य, क्षमा, सहिष्णुता आदि गुणों को विकसित करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। शिक्षा के उद्देश्य को बताते हुए डॉ० ए० एस० अल्तेकर ने लिखा है- भारत की प्राचीन शिक्षा-पद्धति का उद्देश्य चरित्र का संगठन, व्यक्तित्व का निर्माण, प्राचीन संस्कृति की रक्षा तथा सामाजिक और धार्मिक कर्तव्यों को सम्पन्न करने के लिए उदीयमान पीढ़ी का प्रशिक्षण था।'
जैन परम्परा भारतीय संस्कृति अध्यात्ममूलक संस्कृति है जिसमें दो प्रकार की संस्कृतियाँ समान : रूप से प्रवाहित हो रही हैं-- ब्राह्मण और श्रमण। श्रमण-संस्कृति की जैन विचारधारा पूर्णरूपेण विशुद्ध साधनों पर आधारित है। जैन परम्परा में शिक्षा को दो भागों में विभाजित किया गया है- (१) आध्यात्मिक शिक्षा, (२) लौकिक शिक्षा।
जैन शिक्षा आध्यात्मिक उन्नति को प्रथम तथा लौकिक उन्नति को द्वितीय स्थान पर रखती है। मोक्षोपयोगी ज्ञान अर्थात् मोक्ष को केन्द्र मानकर जीव और जगत आदि सम्पूर्ण ज्ञेयतत्त्व का ज्ञान आध्यात्मिक शिक्षा के अन्तर्गत आता है तथा जीविकोपार्जन के लिए शिक्षा प्राप्त करना लौकिक शिक्षा के अन्तर्गत आता है। लौकिक शिक्षा के
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