Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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५४ जैन एवं बौद्ध शिक्षा-दर्शन : एक तुलनात्मक अध्ययन
शैक्षिक अध्ययन की दृष्टि से इस ग्रन्थ के सत्ताईस अध्यायों में से दो अध्याय महत्त्वपूर्ण हैं--- दसवाँ और बारहवाँ। दसवें अध्याय में वर्णन है कि कुमार बोधिसत्व जब आठ वर्ष के हो गये तब उन्हें मांगलिक और औत्सविक परिवेश के साथ लिपिशाला में प्रवेश कराया गया जहाँ दारकाचार्य ने बहुकल्पकोटि शास्त्रों की शिक्षा दी, जिसमें अ, आ, ई आदि वर्णमाला, ककहारा, संख्या-गणना, शिल्प, योग आदि. शास्त्रों का भी ज्ञान कराया।
बारहवें अध्याय में बोधिसत्व के विवाह की कथा के क्रम में उल्लेख हुआ है कि बोधिसत्व केवल चौसठ लिपियों के ही ज्ञाता नहीं थे, अपितु सौ करोड़ से भी आगे की संख्या की गणना जानते थे। तत्पश्चात् छानबे कलाओं१११ का उल्लेख किया गया है।
सन्दर्भ
The sixth century B.C. was marked by two great religious movements in India, Jainism and Buddhism. Both these were reformation movements to purify Hinduism of some of its evils which had greatly degenerated it. Like Luther and Calvin, Mahāvīra and Gautam Buddha protested against the corruptions that had crept into Hinduism. Jainism and Budhism are thus protestant Hinduism as Lutherianism and Calvinism are protestant Christianity. Early History of India, N.N. Ghosh, p.44. Indian Sect of the Jainas : John George Buhler, p. 22. उद्धृत- 'दर्शन प्रकाश', श्री धनमुनि प्रथम, पृ०-४. केसरी समाचारपत्र, उद्धृत- 'दर्शन प्रकाश', धनमुनि प्रथम, पृ० ५. उद्धृत, वही, पृ० ४. Mohanjodaro and the Indus Civilization, pp. 52-53. Modern View, August 1932, pp. 155-160. 'आजकल', मार्च १९६२, पृ०-८ ऋषभं मा समानानां सपत्नानां विषासहित। हन्तारं शत्रूणां कृधि विराजं गोपतिं गवाम्।। 'ऋग्वेद', १०/१६६/१ शतयाज स यजते, नैन दुन्वन्त्यमय: जिन्वन्ति विश्वे।
त देवा यो ब्राह्मण ऋषभमाजुहोति।। 'अथर्ववेद', ९/४/१८ ११. 'ऋषभदेव : एक परिशीलन', देवेन्द्रमुनि शास्त्री, पृ०-१४८ १२. आसा हत्थी गावो गहिआई रज्जसंगहनिमित्तं।
घित्तूण एवमाई चउव्विहं संगहं कुणइ॥ 'आवश्यकनियुत्ति', २०१.
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