Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन एवं बौद्ध धर्म-दर्शन तथा उनके साहित्य दशाश्रुतस्कन्ध
__ ‘दशाश्रुतस्कन्ध' छेदसूत्र हैं। छ: छेदसूत्रों में 'दशाश्रुतस्कन्ध' का अपना अलग स्थान है। इसका ही दूसरा नाम 'आचारदशा' भी है जिसका उल्लेख स्थानांगसूत्र के दशवें स्थान में मिलता है। ‘दशाश्रुतस्कन्ध' में दश अध्ययन हैं, इसलिए भी इसका नाम 'दशाश्रुतस्कन्ध' है। इसमें जैन श्रमणों के आचार से सम्बद्ध प्रत्येक विषय का विस्तार के साथ वर्णन उपलब्ध होता है। दश अध्याय निम्नप्रकार से हैं
असमाधि-स्थान, सबल दोष, आशातना, गणि-सम्पदा, चित्त-समाधि-स्थान, उपासक-प्रतिमा, भिक्षु-प्रतिमा, पर्युषणाकल्प, मोहनीय-स्थान और आयति-स्थान।
इन दश अध्ययनों में से तीसरे और चौथे अध्ययनों में मुख्य रूप से सबल दोष और आशातना- इन दो दशाओं में साधु जीवन के दैनिक नियमों का विवेचन किया गया है तथा बलपूर्वक कहा गया है कि इन नियमों का परिपालन होना चाहिए। इनमें जो त्याज्य हैं उनका दृढ़ता से त्याग करना चाहिए और जो उपादेय हैं उनका पालन करना चाहिए। गुरु के प्रति शिष्य द्वारा किसी प्रकार की आशातना नहीं होनी चाहिए। शिष्य का गुरु के आगे, समश्रेणि में, अत्यन्त समीप में गमन करना, खड़ा होना, बैठना आदि तथा गुरु से पूर्व किसी से सम्भाषण करना, गुरु के वचनों की जानबूझकर अवहेलना करना, भिक्षा से लौटने पर आलोचना न करना आदि तैंतीस प्रकार की आशातनाएँ बतायी गयीं हैं।
चतुर्थ अध्ययन में गणि-सम्पदा के अन्तर्गत आचार्य पद पर विराजित व्यक्ति के व्यक्तित्व, प्रभाव तथा उसके शारीरिक प्रभाव का अत्यन्त उपयोगी वर्णन किया गया है। गणि-सम्पदा के आठ प्रकार बताये गये हैं- आचार-सम्पदा, श्रुत-सम्पदा, शरीर-सम्पदा, वचन-सम्पदा, वाचना-सम्पदा, मति-सम्पदा, प्रयोगमति-सम्पदा और संग्रहपरिज्ञा-सम्पदा। पुनः इन आठों के चार-चार भेद किये गये हैं। व्यवहारसूत्र
'व्यवहारसूत्र' में भी श्रमणों की आचार-संहिता पर चिन्तन किया गया है। इस ग्रन्थ की भद्रबाहु रचित नियुक्ति और भाष्य दोनों प्राप्त होते हैं।६३ अमोलकऋषिकृत हिन्दी अनुवाद और जीवराज घेलाभाई दोशी, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित गुजराती अनुवाद भी प्राप्त होता है। प्रस्तुत ग्रन्थ में दस उद्देशक हैं जिसके अन्तर्गत लगभग तीन सौ सूत्र हैं।६४
तृतीय उद्देशक में गच्छाधिपति की योग्यता, पदवीधारियों के आचार, तरुण श्रमणों के आचार, गच्छ में रहते हुए अथवा गच्छ का त्यागकर अनाचार सेवन करनेवाले के
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