Book Title: Jain evam Bauddh Shiksha Darshan Ek Tulnatmak Adhyayana
Author(s): Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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द्वितीय अध्याय जैन एवं बौद्ध धर्म-दर्शन तथा उनके साहित्य
श्रमण-संस्कृति भारतवर्ष की एक विशिष्ट संस्कृति है जिसके अन्तर्गत दो प्रकार की परम्पराएँ देखने को मिलती हैं- (१) जैन परम्परा और (२) बौद्ध परम्परा। इन दोनों परम्पराओं का विकास ई०पू० छठी शताब्दी में हुआ। ई०पू० छठी शताब्दी धार्मिक आन्दोलन के नाम से विख्यात है। यह आन्दोलन केवल भारत में नहीं, बल्कि सम्पूर्ण एशिया में जोर पकड़े हुए था। सभी जगह पुरानी मान्यताओं को खण्डित कर नयी मान्यताओं एवं सम्प्रदायों का उदय हो रहा था। चीन में लाओट्से और कानफ्यूसियस, ग्रीस में पाइथेगोरस, सुकरात और प्लेटो, ईरान और पर्सिया में जर0स्त्र आदि चिन्तक अपनी नयी-नयी विचारधाराएँ प्रस्तुत कर रहे थे। जैन एवं बौद्ध धर्म भी वैदिक धर्म में व्याप्त कुरीतियों के विरोध में संलग्न थे। नगेन्द्रनाथ घोष ने कहा है कि छठी शताब्दी पूर्व दो धार्मिक आन्दोलनों के लिए प्रसिद्ध है। इसमें जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म हिन्दू धर्म के सुधारक के रूप में उत्पन्न हुए। लूथर और कालविन की तरह महावीर और गौतम बुद्ध ने हिन्दूधर्म में प्रचलित बुराइयों के विरोध में आवाज उठायी। अत: जैनधर्म तथा बौद्धधर्म उसी प्रकार विरोधी अथवा सुधारवादी हिन्दू धर्म (Protestant Hinduism) कहे जा सकते हैं जिस प्रकार लूथरवाद (Lutherianism) तथा कालविनवाद (Calvinism) को विरोधी ईसाई धर्म (Protestant Christianity) कहते हैं। किन्तु दोनों के सम्बन्ध के विषय में विद्वानों में मतभेद पाये जाते हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म का अंग है, तो कुछ का कहना है कि बौद्ध धर्म जैन धर्म से निकला हुआ धर्म है। जैसा कि बुर महोदय का कहना है कि कोलबुक, स्टिवेन्सन और थामस के मत में बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान बुद्ध जैन धर्म के प्रतिष्ठापक के ऐसे शिष्य थे जिन्होंने गुरु से विद्रोह करके एक अलग सिद्धान्त एवं धर्म की स्थापना की। इसके विपरीत एक मत है जिसके समर्थकों में एच०एन० विल्सन, ए० बेकर आदि विद्वानों के नाम आते हैं। उनलोगों का मत है कि जैन धर्म बौद्ध धर्म का एक पुराना अंग था। लेकिन सत्य तो यह है कि जैन धर्म एक स्वतन्त्र धर्म है और इसके संस्थापक एवं सिद्धान्त बौद्ध धर्म के संस्थापक तथा सिद्धान्त से बिल्कुल भिन्न हैं। सुप्रसिद्ध इतिहासवेत्ता डॉ० हरमन जैकोबी ने लिखा है- 'जैन धर्म सर्वथा स्वतन्त्र धर्म है। मेरा विश्वास है
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