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२२ : जैनधर्म का यापनीय सम्प्रदाय
नहीं रखनी चाहिए। जिन भी एकान्त रूप से अचेलक नहीं हैं, क्योंकि सभी जिन एक वस्त्र लेकर दीक्षित होते हैं। गुरु के इस प्रकार प्रतिपादित करने पर भी शिवभूति कर्मोदय के कारण वस्त्रों का त्याग करके संघ से पृथक् हो गया । उसे वन्दन करने हेतु आई उसकी बहन उत्तरा भी उसका अनुसरण कर अचेल हो गई । किन्तु भिक्षार्थं नगर में जाने पर गणिका ने उसे देखा और कहा कि इस प्रकार लोग हमसे विरक्त हो जायेंगे या हमारे प्रति आकर्षित नहीं होंगे । उसने उत्तरा के उर में वस्त्र बांध दिया । यद्यपि उसने वस्त्र की अपेक्षा नहीं की, किन्तु शिवभूति ने कहा कि इसे देवता का दिया हुआ मानकर ग्रहण करो । शिवभूति के दो शिष्य हुए कौडिन्य और कोट्यवोर । इन शिष्यों से उसकी पृथक् परम्परा आगे बढ़ी । "
अर्धमागधी आगम साहित्य एवं मथुरा के अंकनों से ज्ञात होता है कि आर्यकृष्ण के समय में मुनि नग्नता को छिपाने के लिए वस्त्र का उपयोग करते थे । सम्भवतः शिवभूति का इसी प्रश्न पर आर्य कृष्ण से विवाद हुआ होगा। इस कथा में भी मतभेद का मुख्य कारण वस्त्र एवं उपधि का ग्रहण ही माना गया है । कथानक के अन्य तथ्यों में कितनी प्रामाणिकता है, यह विचारणीय है । यह सम्भव है कि शिवभूति द्वारा अचेलकता को ग्रहण करने पर उनकी बहन एवं सम्बन्धित साध्वियों ने भी अचेलकत्व का आग्रह किया होगा, किन्तु शिवभूति ने साध्वियों की अचेलकता को उचित न समझकर कहा हो कि जिस प्रकार तीर्थङ्कर देवदृष्य नामक वस्त्र ग्रहण करते हैं उसी प्रकार साध्वियों को भी देवता का दिया हुआ मानकर एक वस्त्र ग्रहण करना चाहिए। इस प्रकार श्वेताम्बर परम्परा में बोटिकों की उत्पत्ति के सम्बन्ध में जो कथा मिलती है वह साम्प्रदायिक अभिनिवेश से पूर्णतया मुक्त तो नहीं है - फिर भी उसमें इतनी सत्यता अवश्य है कि बोटिक अचेलकता के प्रश्न को लेकर तत्कालीन परम्परा से अलग हुए थे तथा उन्होंने साध्वियों के लिए एक वस्त्र रखना मान्य किया था । कथानक का शेष भाग साम्प्रदायिक अभिनिवेश की रचना है । ऐतिहासिक दृष्टि से इसकी सत्यता इस अर्थ में है कि आर्यकृष्ण और शिवभूति काल्पनिक व्यक्ति न होकर ऐतिहासिक व्यक्ति
१. आवश्यक नियुक्ति हरिभद्रीयवृत्ति. पृष्ठ २१६-२१८
2. Jaina Stupas and other Antiquities of Mathura— V. A. Smith, Plate No. 10, 15, 17, PP 24.25 |
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