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विषय-प्रवेश : २३ हैं क्योंकि उनका उल्लेख कल्पसूत्र को स्थविरावली में मिलता है । यद्यपि जहाँ कल्पसूत्र स्थविरावली में आर्यकृष्ण का उल्लेख शिवभूति के शिष्य के रूप में हुआ है, वहीं विशेषावश्यक में शिवभूति को आर्यकृष्ण का शिष्य कहा गया है । अज्जकण्ह [आर्यकृष्ण] का उल्लेख मथुरा के अभिलेख में भी है।' सम्भव है कि दोनों ही गरुभ्राता हों।
दिगम्बर परम्परा में यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दो कथानक उपलब्ध होते हैं। देवसेन (लगभग ई० सन् की दसवीं शताब्दी) के दर्शनसार नामक ग्रन्थ के २९वीं गाथा के अनुसार श्री कलश नामक श्वेताम्बर साधु ने विक्रम की मृत्यु के २०५ वर्ष पश्चात् कल्याण नगर में यापनीय संघ प्रारम्भ किया। ग्रन्थ में इस सम्बन्ध में विस्तृत विवरण का अभाव है। ___यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में दूसरा कथानक रत्ननन्दी के . भद्रबाहुचरित ( ईसा की लगभग १५वीं शताब्दी) में उपलब्ध होता है
करहाटक के राजा भूपाल की पत्नी नकुलादेवी ने राजा से आग्रह किया कि वे उसके पैतृक नगर जाकर वहाँ आये हुए आचार्यों को आने हेतु अनुनय करें। राजा ने नृकुलादेवी के निर्देशानुसार अपने मन्त्री बुद्धिसागर को भेजकर उन मुनियों से करहाटक पधारने की प्रार्थना की । राजा के आमन्त्रण को स्वीकार कर वे मुनिगण करहाटक पधारे। उनके स्वागत हेतु जाने पर राजा ने देखा कि वे साधु सवस्त्र हैं और उनके पास भिक्षा पात्र और लाठी भी है। यह देखकर राजा ने उन्हें वापस लौटा दिया । नृकुलादेवी को जब यह ज्ञात हुआ तो उसने उन मुनियों से दिगम्बर मुद्रा में पिच्छि-कमण्डलु लेकर पधारने का आग्रह किया और उन्होंने तदनुरूप दिगम्बर मुद्रा धारण कर नगर प्रवेश किया । इस प्रकार वे साधु वेष से तो दिगम्बर थे किन्तु उनके क्रिया-कलाप श्वेताम्बरों जैसे थे । यापनीय संघ की उत्पत्ति के सम्बन्ध में रत्ननन्दी का यह कथन पूर्णतः प्रामाणिक नहीं है । यापनीयों की उत्पत्ति श्वेताम्बर परम्परा से न होकर उस मल धारा से हुई है, जो श्वेताम्बर परम्परा को भी पूर्वज थी, १. (अ) कल्पसूत्र, २२३/१ (311) Jaina Stupas and other Antiquities of Mathura—V.A.
Smith, Plate No. 10, 15, 17, pp. 24-25. 2. Annals of the B. O. R. I. XV-III. IV, pp. 191ff, Poona,
1934; देखें अनेकान्त, वर्ष २८, किरण १, पृ० १३४ ।
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