Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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[ २७ । विकता के दर्शन होते हैं, वहाँ आयति बोर प्रणानि में भी पूर्ण सामजस्य उपलब्ध होता है । घमं प्रचार, मारिय मेवा, गमाजोत्यान की सेवा का महानग्रन नके जीवन को नवं नपान मङ्गलमयी साधना है।
परम पढेग मरुधर केगरी जो द्वारा लिगित "जैन धर्म में तम · स्वरूप और विश्लेषण" नामक गन्थर न । परिशीलन किया। प्रमाणन तो बहुत देखने में आए पन्तु नपोदेवता ये पायन चरणो मे व्यापक संप मे, गुरे दिल के नाय इतनी अधिक मात्रा में श्रद्धासुमनों का गमर्पण जीग में पानी बार देगा है। तप मे सम्बन्ध में जितने दृष्टिकोण उपलब्ध होगरते है, इसमें उन सब घान में समा गया है। अन्य TTER मानों तय गम्बन्धी मान्यताओं और भावना को या
क्षय नस्टार है। जैन-जनेतर चारयो तमा मोके पर तन पावन धरनों का उपन्याग करगे तो गोने में मागेमा काम कर दिया । यही नही तो नरक की भावना सनी मागार होती दिगाई lifT में हत्या प्राय सारे विशाहीरी। पापा ममा बनेगर परमी में मिला है।
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