Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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[ २५ । सुप्रसिद्ध विचारक एवं अनेक ग्रन्यों के लेखक
श्री विजय मुनि शास्नी, साहित्यरत्न
तप एक अध्यात्म शक्ति है। जीवन की उर्जा जो अघोपा. हिनी हो रही है, उमे मध्यवाहिनी करना ही तप मा एक मात्र लक्ष्य है । मन मी वृत्तियों को बदलना हो, तप का उद्देश्य नही है. तप का उद्देश्य है ममम जीयन गा पान्तरण ! नप जीयन शो गणित होने बचाता है, और उमे भरतपः एव नमन सपने की जो कुछ साधना है, वह है तप !
तोमंडारी में एवं गणधरी ने तप गो माधना में जो मुछ उपलव्य किया वस्तुत. यही चोतगगदान है। पीपरागता प्राप्ति का अनन्य साधन तपही। सन परम्परा पा तप गना मापक और मा विमान कि उसमें मोचन यो उननग शिया पर पाने में सभी गापनी राममायेदा हो जाता है।
जैन आगो में तप में भारत भेशिश गरे । बनमा में मेरर ध्यान और माग रामसपमा विमतिया गया है, उसो परिक्षित लामा को ना मोर को और मा, रम में मुम में प्रोगा ।
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