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उपनिषदों में कर्म और पुनर्जन्म का उल्लेख
कठोपनिषद् में नचिकेता के उद्गार हैं- 'जैसे अन्नकण पकते हैं और विनष्ट हो जाते हैं, फिर वे पुनः उत्पन्न होते हैं, वैसे ही मनुष्य भी जीता है, मरता है और पुन: जन्म लेता है।७३
कठोपनिषद् में यम ने नचिकेता को कर्म और ज्ञान के अनुसार पुनर्जन्म होता है, इस सिद्धांत की शिक्षा दी।७४ कठोपनिषद् में भी बताया गया है कि, 'आत्माएँ अपने-अपने कर्म और श्रुत के अनुसार भिन्न-भिन्न योनियों में जन्म लेती हैं। ७५ · बृहदारण्यक उपनिषद् में स्पष्ट कहा है, मृत्यु काल में आत्मा नेत्र, मस्तिष्क अथवा अन्य शरीर के प्रवेश में से उत्क्रमण करती है, उस समय विद्या (ज्ञान) कर्म और पूर्व प्रज्ञा उस आत्मा का अनुसरण करती है। इसी उपनिषद् में कर्म का सरल और सारभूत उपदेश दिया गया है कि, जो आत्मा जैसा कर्म करता है, जैसा आचरण करता है वैसा ही वह बनता है। जो सत्कर्म करता है तो अच्छा बनता है, पाप कर्म करने से पापी बनता है, जैसा कर्म करता है तदनुसार वह इस जन्म में या अगले जन्म में बनता है।७६
छान्दोग्य-उपनिषद् में भी कहा है कि जिसका आचरण रमणीय है, वह मरकर शुभयोनि में जन्म लेता है और जिसका आचरण दुष्ट होता है, वह चाण्डाल आदि अशुभ योनियों में जन्म लेता है।७७ . छांदोग्योपनिषद् में कहा गया है कि, व्यक्ति जो शुभ कर्म करता है, अच्छा जन्म पाता है, स्वास्थ्य पाता है, और आरामदायक जीवन पाता है और जो असत् कर्म करता है उसे निश्चित ही बुरा जन्म मिलता है, बुरा स्वास्थ्य मिलता है और कष्टदायक जीवन मिलता है। कार्य के अनुसार आत्मा को पुर्नजन्म में विविध अवस्थाएँ प्राप्त होती हैं। भगवद्गीता में कर्म और पुनर्जन्म का संकेत __भगवद्गीता में कर्मानुसार पूर्वजन्म और पुनर्जन्म के अस्तित्व को सिद्ध करने वाले अनेक प्रमाण मिलते हैं। गीता में बताया है कि 'आत्मा की इस देह में कौमार्य, युवा एवं वृद्धावस्था होती है, वैसे ही मरने के बाद अन्य देह की प्राप्ति होती है। उस विषय में धीर पुरुष मोहित नहीं होता।' आगे कहा गया है कि, जैसे मनुष्य पुराने वस्त्र जीर्ण हो जाने पर नये वस्त्र धारण करता है वैसे ही जीवात्मा का यह शरीर जीर्ण हो जाने पर पुराने शरीर को त्याग कर नये शरीर को पाता है।७८ यही बात कर्मसिद्धांत आणि पुनर्जन्म में भी यही कहा है।७९ 'जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु निश्चित है, जो मर गया है, उसका पुन: जन्म होना भी निश्चित है। अत: इस अपरिहार्य विषय में शोक करना उचित नहीं है।' इसी प्रकार श्रीकृष्ण