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मधुरता के स्वभाव का निर्माण होता है। वह स्वभाव कुछ निश्चित काल तक उसी रूप टिकेगा, ऐसी कालमर्यादा भी निश्चित होती है । इस मधुरता के तीव्रता, मंदता आदि विशेष गुण भी होते हैं और इस दूध का पौद्गलिक परिमाण भी होता है।
इसी प्रकार जीव द्वारा ग्रहण किये जाने पर, तथा उसके आत्मप्रदेश में संश्लेषण को प्राप्त होने पर कर्मपुद्गलों की भी चार स्थितियाँ होती हैं । प्रकृतिबंध, स्थितिबंध, अनुभागबंध, प्रदेशबंध । १९९ षड्दर्शन- समुच्चय २०० तत्त्वार्थसार २०१ और तत्त्वार्थ सूत्र २०२ में भी यही बात कही है।
प्रकृतिबंध
प्रकृति अर्थात् स्वभाव 'प्रकृतिः स्वभावः प्रोक्तः । पयडी एत्थ सहावो ।
जिस प्रकार नीम का स्वभाव कडवापन और गुड का स्वभाव मीठापन होता है, उसी प्रकार कर्म में भी आठ प्रकार के स्वभाव होते हैं, इन्हें प्रकृतिबंध कहते हैं। आठ प्रकार के कर्म इस प्रकार हैं।
४) मोहनीय,
१) ज्ञानावरणीय, २) दर्शनावरणीय, ३) वेदनीय, ५) आयुष्य, ६) नाम, ७) गोत्र, ८) अंतराय २०३ ज्ञानावरण का स्वभाव ज्ञान को आवरित कर देना है। दर्शनावरण का स्वभाव दर्शन को (सामान्य प्रतिभासरूप शक्ति को ) ढक देना है | वेदनीय का स्वभाव जीवकोष्ट अनिष्ट पदार्थों के संयोग और वियोग में सुख दुःख का वेदन या अनुभव कराने का है । मोहनीय के दो भेदों में दर्शन मोहनीय का स्वभाव तत्त्वार्थ श्रद्धान न होने देना, और चारित्र मोहनीय का स्वभाव संयमभाव में बाधक होने का और राग-द्वेष आदि उत्पन्न करने का है। आयुकर्म का स्वभाव जीव को किसी शरीर में स्थित रखने का है। नामकर्म का स्वभाव जीव के लिए अनेक प्रकार के शरीर आदि बनाने का है । गोत्र का स्वभाव ऊंच या नीच कुलों में जीव 'को उत्पन्न करना है। अंतराय का स्वभाव दानादि कार्यों में विघ्न उत्पन्न करना है ।
कर्म में इस प्रकार का स्वभाव निर्माण होना यह प्रकृतिबंध है । २०४ जैन सिद्धांतदीपिका २०५ में भी यही कहा है। जिसके द्वारा आत्मा को अज्ञानादिरूप फल मिलता है, वह प्रकृति है, यह प्रकृति शब्द की व्युत्पत्ति है । २०६ कर्म जब आत्मा द्वारा ग्रहण किये जाते हैं, तब उनमें भिन्न-भिन्न प्रकार का जो स्वभाव उत्पन्न होता है, उसे ही प्रकृतिबंध कहते हैं। प्रत्येक कर्म की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है । प्रकृतिबंध कर्म के स्वभाव के अनुसार होता है। प्रकृति जैसी बाँधी जाती है, वैसी ही उदय में आती है। उदय में आनेवाला कर्म ज्ञानावरण आदि किस स्वभाव का होगा, यह दिखाना ही प्रकृतिबंध है ।