________________
329
विभिन्न दर्शनों में मोक्ष
अलग-अलग दर्शनों में मोक्ष के लिए निर्वाण, मोक्ष, मुक्ति, निवृत्ति, कैवल्य आदि शब्दों का उपयोग हुआ है। इसका मुख्य अर्थ शांति या दुःख निवृत्ति है। चार्वाक के अलावा प्राय: भारतीय दर्शनों में अविद्या या अज्ञान के संपूर्ण नाश को मोक्ष कहा है। सांख्य पुरुष विवेक को मोक्ष कहते हैं। अद्वैत वेदांत आनंद प्राप्ति को मोक्ष कहते हैं। सांख्य दर्शन
सांख्यदर्शन के अनुसार मोक्ष का साधन ज्ञान है। और अविद्या या अज्ञान का विनाश ही मोक्ष है। धर्माचरण से ब्रह्म, सौम्य आदि उच्च देव योनियों में जन्म मिलता है। अधर्म के आचारण से पशु आदि नीच योनियों में जन्म मिलता है। प्रकृति और पुरुष में विवेक ज्ञान के कारण मोक्ष प्राप्त होता है। उसी तरह प्रकृति और पुरुष विषयक विपर्यय ज्ञान से बंध होता है। जबतक पुरुष को बुद्धि अहंकार, पाँच तन्मात्राएँ, स्पर्श, रस, गंध, वर्ण और शब्द, अहंकारजन्य पाँच ज्ञान इन्द्रियाँ, पाँच कर्म इन्द्रियाँ तथा भौतिक शरीर आदि अनात्मा पदार्थों में मैं सुनता हूँ, मैं देखता हूँ, ऐसा भ्रम होता है, और वह शरीर को आत्मा मानता है, तब तक उसे इस विपर्यय ज्ञान से बंध होता है। लेकिन जब उसे पुरुष के अलावा इन सब वस्तुओं की प्रकृतिकृत और त्रिगुणात्मक मानकर उनसे विरक्त होता है और उसे मैं नहीं, यह मेरा नहीं, ऐसा विवेक जागृत होता है तब ऐसे सम्यग्ज्ञान से उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। . आध्यात्मिक, आधिभौतिक और आधिदैविक इन त्रिविध दुःखों की प्राप्ति का कारण अविद्या है। अविद्या का विनाश विवेक से होता है। उपरोक्त त्रिविध दुःखों की आत्यन्तिक हानि ही मोक्ष है। सांख्यकारिका में दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति को ही कैवल्य कहा है। कैवल्य की प्राप्ति तत्त्वज्ञान होने पर ही संभव होती है। कैवल्यप्राप्ति के बाद सारे संशय दूर हो जाते हैं और हृदय की सारी ग्रंथियाँ नष्ट हो जाती हैं।
तात्पर्य यह है कि सांख्य दर्शन में विपर्यय को बंध और विवेकज्ञान को मोक्ष माना गया है।२४३ अमर-भारती२४४ में भी यही बात कही है। मीमांसा दर्शन - इस दर्शन के अनुसार आत्मा से भिन्न विजातीय वस्तुओं के साथ संबंध होना यह बंध है। मीमांसादर्शन तीन बंधन मानता है। १) भोक्ता शरीर, २) भोग के साधन और ३) भोगविषय। आत्मा अनादि काल से इन तीन बंधनों में पडी है और अनेक प्रकार के कष्ट सहन कर रही है। इन बंधके कारण आत्मा सुख और दुःख भोगती है। इसे ही भावबंध कहा