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है। जो भव्यप्राणी अंतर्मुहूर्त (४८ मिनिट) के लिए भी निर्मल सम्यक्त्व को प्राप्त करता है। वह चिरकाल तक संसार में नहीं भटकता और अंतत: उसे मोक्ष प्राप्त होता है। २७९
जैन धर्म में सम्यक्त्व पर बहुत बल दिया गया है। सम्यक्त्व यह आत्मा का गुण है। सम्यक्त्व यह बीज है। जिस प्रकार बीज के बिना अंकुर नहीं फूट सकता और बाद में वृक्ष भी खडा नहीं रहता, उसी प्रकार सम्यक्त्व के अलावा जितनी क्रियाएँ हैं या जितना धर्म कार्य है, वह सब व्यर्थ है। सम्यक्त्व का सरल अर्थ है- विवेकदृष्टि। प्रत्येक कार्य में विवेक चाहिए। सम्यक्त्व का दूसरा अर्थ है- श्रद्धा। देव, गुरु और धर्म इन पर पूर्ण विश्वास ही 'सम्यक्त्व' है। ___ सम्यक्त्व के विपरीत मिथ्यात्व है। देव, गुरु और धर्म इनमें इच्छित गुण न होने पर भी उन्हें देव, गुरु और धर्म के रूप में स्वीकार करना यह मिथ्यात्व है। जिस मनुष्य में सम्यक्त्व होता है। उसका हृदय दयालु होता और परोपकार से युक्त होता है। संयत, नियमित और नियंत्रित जीवन यही श्रेष्ठ जीवन है। जो मनुष्य इच्छानुसार अनियंत्रित जीवन जीता है, इन्द्रियों की अमर्यादित वृत्तियों का स्वच्छन्द उपयोग करता है उसका भविष्य उज्ज्वल नहीं है। वह दुःखों के भयंकर परिणामों से बच नहीं सकता। रागद्वेष, मोह यही संसार परिभ्रमण का मूल है इसलिए उनसे दूर रहकर ही अपने शाश्वत लक्ष्य 'मुक्ति' तक पहुँचा जाता है। सम्यक्त्व मुक्ति का एकमेव साधन है। परमार्थ को जानना, परमार्थ के तत्त्वदृष्टा की सेवा करना सम्यक्त्व से भ्रष्ट और कुदर्शनी (मिथ्यात्वी) इनसे दूर रहना, यही सम्यक्त्व में श्रद्धा रखना है। चारित्र सम्यक्त्व के बिना नहीं हो सकता, परंतु सम्यक्त्व चारित्र के बिना हो सकता है।२८० सम्यग्दर्शन
मोक्षमार्ग में सम्यग्दर्शन का प्रथम तथा अति महत्त्वपूर्ण स्थान है। क्योंकि सम्यग्दर्शन के बिना आगमज्ञान, चारित्र, व्रत, तप आदि सब व्यर्थ हैं। रत्नत्रय में भी सम्यग्दर्शन अतीव महत्त्वपूर्ण है। सम्यग्दर्शन ही सम्यग्ज्ञान और चारित्र का मूल है। जहाँ सम्यग्दर्शन नहीं है, वहाँ ज्ञान और चारित्र दोनों मिथ्या हैं। प्रत्येक आत्मा में ज्ञान तो होता है, परंतु जब तक सम्यग्दर्शन नहीं होता, तब तक ज्ञान सच्चा ज्ञान नहीं होता, इसलिए सम्यग्दर्शन को सर्वप्रथम स्थान दिया है।
कोई व्यक्ति यदि अर्हत् आदि द्वारा उपदेशित प्रवचनों पर या आप्त पुरुषों द्वारा प्रणीत आगमों पर श्रद्धा रखकर गुरु आज्ञा का सम्यक्दृष्टि से पालन करे तब उसे सम्यग्दर्शन की प्राप्ति होती है। २८१ जिस प्रकार नगर का द्वार प्रमुख होता है, चेहरे पर आँख प्रमुख होती है, वृक्ष में मूल प्रधान होता है, उसी प्रकार ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप इन चार आराधनाओं में सम्यक्त्व का प्रमुख स्थान है।