Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag

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Page 379
________________ 362 जैन आगम तथा उससे संबंधित पश्चात्वर्ति साहित्य इस कर्म सिद्धांत के प्रबंध का मुख्य साधन है। कर्म सिद्धांत का स्वरूप और विश्लेषण स्पष्ट करने में यह उपयोगी होगा। इसी दृष्टिकोण से प्रथम प्रकरण में संक्षेप में आगमों, उनका व्याख्या साहित्य तथा इतर साहित्य पर प्रकाश डाला गया है। जैन धर्म का स्रोत अनादिकाल से गतिशील है। यह नि:संदेह बहुत ही महत्त्वपूर्ण है कि आज भी जैन धार्मिक परंपरा जैसी भगवान महावीर के समय में थी, उसी प्रकार साधुसाध्वी, श्रावक-श्राविकामय चतुर्विध संघ के रूप में अखंडित विद्यमान है। अन्य धार्मिक परंपराएँ आज अपने प्राचीनतम आचार संहिता मूलरूप में दृष्टि गोचर नहीं होतीं। जैनधर्म का साहित्य भंडार बडा विशाल है। आगमों के संबंध में पूर्व पृष्टों में यह उल्लेख किया ही जा चुका है कि प्राचीन भारतीय जीवन समाज एवं चिंतनधारा पर बड़े व्यापक रूप में प्रकाश डाला गया है। __ आगमोत्तर-काल में विविध शैलियों में विपुल मात्रा में साहित्य रचा गया। जैन साहित्यकारों, कवियों और लेखकों का इस बात की ओर सदा से ही विशेष ध्यान रहा कि वे ऐसे ग्रंथों की रचना करें, जिनसे साधु-साध्वियों को तो लाभ होता ही है, गृहस्थ-जिज्ञासुओं और साधकों को भी मार्गदर्शन एवं प्रेरणा प्राप्त होती है। ___ आगम समाज की अनुपम निधि है। उसे समाज का दर्पण कहा जाता है। जिस तरह दर्पण में व्यक्ति का आकार दृष्टि गोचर होता है, वैसे ही साहित्य और आगम में समाज का सजीव चित्रण विद्यमान रहता है। वह कभी पुरातन नहीं होता। जितनी बार उसका अध्ययन किया जाता है, उसे पढा जाता है, उतनी ही उसमें नवीनता प्राप्त होती है। क्षणे-क्षणे यजवामुपैति तदेव रूपं रमणीयः । जो प्रतिक्षण नवीनता प्राप्त करता जाए, वही रमणीयता या सुंदरता का रूप है, अर्थात् साहित्य का सौंदर्य कभी पुरातन नहीं होता, कभी मिटता नहीं, इसलिए उसमें समग्र मानव जाति का आकर्षण, हित एवं कल्याण, सन्निहित रहता है। - इस दृष्टि से जैन-साहित्य की अनुपम विशेषता है। उससे सहस्राब्दियों तथा शताब्दियों से कोटि-कोटि जनता लाभान्वित होती रही है। आज भी साहित्य अपने उसी प्राचीन गौरव के लिए प्रसिद्ध है। साहित्य को सत्यं शिवम् सुंदरम् कहा जाता है। वह सुंदर होने के साथ-साथ सत्य है। त्रैकालिक शाश्वतता लिए हुए है। तथा शिव या परम कल्याणकारी है।

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