Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag

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Page 374
________________ 357 है, किंतु गहराई से विचार करने पर इमर्सन के कथन का मुक्त ज्ञान उजागर होता है। वर्तमान युग में जितना भी भौतिक विकास हो रहा है, आश्चर्यजनक साधनों का निरंतर आविष्कार हो रहा है, उन सबके मूल में कर्ता कौन है? आखिर है तो मानव ही, मनुष्य की मेधा ही तो विश्व में नये-नये आविष्कार करने में समर्थ है। इन सब शक्तियों का आविष्कार मानव के अंतरंग से ही होता है। जो आश्चर्यजनक शक्ति एक वैज्ञानिक में दिखती है। उससे भी कई गुनी अधिक शक्ति, विश्व के प्रत्येक प्राणी में सूक्ष्म रूप से विद्यमान है। हर मानव अनंत शक्ति का स्वामी है, किसी की शक्ति आवृत है तो किसी की शक्ति अनावृत। इस विभेद के कारण ही आत्मिक शक्ति के विविध रूप दृष्टि गोचर हो रहे हैं। इमर्सन का यह कथन इस अर्थ में सत्य है, कि उसकी आत्मा में सत्ता की अपेक्षा से अखिल विश्व का स्वामित्व विद्यमान है। सीजर के बाहुबल और प्लेटों के मस्तिष्क से भी बढकर संपूर्ण विश्व में जितनी भी विलक्षण एवं अद्भुत शक्तियाँ परिलक्षित होती हैं। वे सभी शक्तियाँ मानव के अंतर में विद्यमान हैं। प्रभु महावीर ने अपने विशिष्ट ज्ञानलोक में देखकर विश्व के प्राणियों की आत्मिक शक्ति को जागृत करने के लिए यह देशना प्रदान की 'अप्पा सो परमप्पा' आत्मा ही परमात्मा है। विश्व की प्रत्येक आत्मा में अनंत शक्ति का स्रोत विद्यमान है। उस शाश्वत सत्ता की अपेक्षा से विश्व की समस्त आत्माएँ संपूर्ण विश्व का स्वामी हैं। भारतीय दर्शन में साधना पथ भारतीय दर्शन अत्यंत सूक्ष्मदर्शी है। जीवन के रहस्यों की उद्घाटित करने में भारतीय मनीषियों ने जो पुरुषार्थ किया वह अनुपम है। अन्तर्निरीक्षण की प्रेरणा देते हुए उन्होंने आध्यात्मिक आनंद की सर्वोत्कृष्टता स्थापित की। जीवन का परम सत्य बताया। जिज्ञासु, मुमुक्षु साधक को उत्तरोत्तर जीवन की लंबी यात्रा में गतिशील रहने की प्रेरणा दी। वह एक ऐसी यात्रा है जिसका पथ बडा कंटकाकीर्ण है। अतएव साधक को अत्यधिक आत्मबल, साहस और धैर्य रखते हुए सावधान किया। प्रस्तुत शोध-प्रबंध में उसी अंतर्मुखी आध्यात्मिक यात्रा का विश्लेषण है। जिसका प्रारंभ कर्मसिद्धांत के मर्म को जानने से होता है तथा समापन कर्मों से मुक्त होने से होता है। जो महापुरुष सफलतापूर्वक उस यात्रा पथ पर आगे बढते हुए अंतिम मंजिल तक पहुँच जाते हैं, वे सफल हो जाते हैं, अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेते हैं। वे निर्विकार, निर्मल परम शुद्ध . चिन्मय अवस्था अधिगत करते हैं तथा मुमुक्षु के लिए प्रेरणास्रोत हैं।

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