________________
332 अंतिम चौदहवें गुणस्थान तक पहुँचता है। इस गुणस्थान को अयोगी केवली कहा जाता है। इसमें आत्मा उत्कृष्टतम शुक्लध्यान द्वारा सुमेरु पर्वत के समान निष्कंप स्थिति प्राप्त कर, अंत में देह त्यागपूर्वक सिद्धावस्था को पहुंचता है। इसी सिद्धावस्था का नाम परमात्मपद स्वरूप सिद्धि, मुक्ति, मोक्ष या निर्वाण है।
यह आत्मा की सर्वांगीण पूर्णता, पूर्ण कृतकृत्यता और परम पुरुषार्थ की सूचक है। इस स्थिति में आत्मा की आत्यन्तिक दुःखनिवृत्ति होती है। उसे अनंत अव्याबाध, अलौकिक सुख प्राप्त होता है। मोक्ष या निर्वाण की अवस्था में सारे बंधन नष्ट हो जाते हैं। दैहिक, वाचिक और मानसिक सारे दोष निशेष हो जाते हैं। समग्र वासनाओं और क्लेशों की निरवशेष शांति ही निर्वाण का परम लक्ष्य है। २५२ मोक्ष या निर्वाण श्रमण संस्कृति का अद्भुत और अनुपम आविष्कार है। भारतीय महर्षियों ने साधना के इस चरम बिंदु को निर्वाण या मुक्ति के रूप में अभिव्यक्त किया है।
जैन दर्शन के अनुसार लोकाग्र पर एक ऐसा ध्रुवस्थान है जहाँ जरा, मृत्यु, आधिव्याधि और वेदना आदि कुछ नहीं है। उसके निर्वाण, अव्याबाध, सिद्धपद, लोकाग्र, क्षेम, शिव और अनाबाध जैसे अनेक नाम हैं। ऐसा स्थान प्राप्त करने के लिए साधक साधना करते हैं। २५३ जन्म-मरण का अंत करने वाले मुनि जिस मोक्ष स्थान को प्राप्त कर शोक चिंता से मुक्त होते हैं, ऐसा मोक्ष स्थान लोकाग्र पर स्थित है। साधना के बिना वहाँ पहुँचना अत्यंत कठिन है।२५४ .
सभी दु:खों से मुक्त होने के लिए साधक संयम और तप द्वार पूर्व कर्मों का क्षय करके मोक्ष प्राप्त करते हैं। २५५ अमरभारती२५६ में भी यही बात कही है। द्रव्यमोक्ष और भावमोक्ष
५. मोक्ष के दो भेद बताएँ गये हैं- १) द्रव्यमोक्ष और २) भावमोक्ष। जीव जब घाती कर्मों से मुक्त होता है, तब उसे भावमोक्ष की प्राप्ति होती है। जब अघाती कर्मों को नष्ट करता है, तब उसे द्रव्यमोक्ष की प्राप्ति होती है। सामान्यत: मोक्ष एक ही प्रकार का है परंतु द्रव्य, भाव आदि की दृष्टि से अनेक प्रकार का है। भावमोक्ष, केवलज्ञान, जीवन्मुक्ति अर्हत् पद ये सारे पयार्यवाची शब्द हैं।
शुद्ध रत्नत्रय की साधना से घाती कर्मों की निवृत्ति होती है, उसे भावमोक्ष कहते हैं। वस्तुत: कषाय भावों की निवृत्ति ही भावमोक्ष है। जो जीव संवर से युक्त है और समस्त कर्मों की निर्जरा करते समय वेदनीय, नाम, गोत्र और आयुष्य कर्म की भी निर्जरा करता है और वर्तमान पर्याय का परित्याग करता है, उसे द्रव्यमोक्ष प्राप्त होता है।