Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag

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Page 346
________________ 330 गया है। भव बंध के कारण ही मनुष्य जन्ममरण के चक्र में घूमता है। इसलिए मानव ऐसे सांसारिक बंधनों से मुक्ति की इच्छा करता है। इनसे मुक्ति प्राप्त होना यही मोक्ष है। शास्त्रदीपिका में कहा है त्रिविधस्यापि बंधनस्यात्यन्तिको विलयो मोक्षः ।२४५ न्याय-वैशेषिक दर्शन इस दर्शन ने दुःख की आत्यन्तिक निवृत्ति को मोक्ष माना है तथापि उन्होंने शरीर विच्छेद को मोक्ष नहीं माना है। उनके मत में भी तत्त्वज्ञान ही मोक्ष का कारण है। इस दर्शन में अष्टांगयोग (यम, नियम, आसन, प्राणायाम प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि) के अनुष्ठान से तत्त्वाज्ञान की प्राप्ति मानी जाती है। अष्टांगयोग द्वारा तत्त्वज्ञान प्राप्त होने पर आत्मा का साक्षात्कार होता है और आत्म साक्षात्कार ही मोक्ष का कारण है। आत्म साक्षात्कारो मोक्ष हेतुः ।२४६ जिस पुरुष को तत्त्वज्ञान प्राप्त होता है उसमें इच्छा द्वेष आदि भाव नहीं रहते। वे न रहने से धर्म-अधर्म नहीं होता, परिणामत: शरीर और मन का संयोग नहीं होता, जन्म मरण नहीं होता और संचित कर्मों का निरोध होने पर मोक्ष प्राप्त होता है। जिस प्रकार दीपक बुझने पर अंधेरा हो जाता है, उसी प्रकार धर्म-अधर्म के बंधन नष्ट होने पर जन्म मरण का संसारचक्र नष्ट हो जाता है। तात्पर्य यह है कि विपर्यय यह बंध का कारण है। और तत्त्वज्ञान मोक्ष का कारण है तत्त्वज्ञान से भ्रम का निराश होने पर जन्म-मरण और दुःखों का नष्ट हो जाना इसे ही 'मोक्ष कहते हैं। आत्यन्तिक दुःख-निवृत्ति को ही नैयायिक मोक्ष कहते हैं। . वैशेषिक सूत्र में कणादऋषी ने कहा है कि धर्म ऐसा पदार्थ है कि उससे सांसारिक उत्थान और पारमार्थिक निःश्रेयस ये दोनों प्राप्त होते हैं।२४७ बौद्धदर्शन बौद्ध दर्शन में निर्वाण के संबंध में दुःख निरोध की व्याख्या बतायी है। बौद्ध अविद्या को बंध और विद्या को मोक्ष मानते हैं। बौद्ध मत के अनुसार निर्वाण या मोक्ष जीवनकाल में ही प्राप्त हो सकता है। इसे जीवन-मुक्त कहते हैं, जीवन-मुक्त अवस्था में व्यक्ति राग-द्वेष आदि पर विजय प्राप्त कर अपने कर्मबंध का विनाश करने में समर्थ बनता है। जिस प्रकार बीज जल जाने पर अंकुर का निर्माण नहीं होता, उसी प्रकार कर्माशक्ति के अभाव में पुनर्जन्म की प्राप्ति नहीं होती। बौद्ध दर्शन में कहा है कि दीपक बुझने पर उसकी ज्योति जमीन की ओर नहीं जाती और आकाश की ओर भी नहीं जाती, दिशा और विदिशा में भी नहीं फैलती, तेल समाप्त

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