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१३) अगुरुलघु नाम का एक भेद १४) उपघात नाम का एक भेद १५) पराघात नाम का एक भेद १६) आनुपूर्वी के चार भेद
१) नरकानुपूर्वी, ३) मनुष्यानुपूर्वी,
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२) तिर्यंचानुपूर्वी,
४) देवानुपूर्वी १६९
१७) उच्छ्रवास नाम नाम का एक भेद
. १८) उद्योत नाम का एक भेद
१९) आताप नाम का एक भेद
२०) विहाय गति नाम के दो भेद
१) प्रशस्त विहाय गति : गंध हस्ती के समान शुभ चलने की गति ।
२) अप्रशस्त विहाय गति : ऊँट के समान अशुभ चलने की गति ।
नाम कर्म की चौदह पिंड प्रकृतियों के उक्त प्रभेदों को मिलाने से उत्तर भेदों की समस्त संख्या ६५ होती है। २८ प्रकृतियों को मिलाने से ९३ भेद होते हैं । त्रस दशक + स्थावर दशक + पराघात नाम, उच्छ्रवास, आताप, उघोत, अगुरुलघु, तीर्थंकर, निर्माण, उपाघात इसमें बंधन के १५ भेद मिलाने से १०३ भेद होते हैं । १७०
नाम कर्म ८ प्रकार से बाँधे
१) काया की वक्रता, भावों की वक्रता,
शुभ नाम कर्म चार प्रकार से बाँधा जाता है
१) काया की सरलता अर्थात् काया के द्वारा कोई कपटपूर्वक प्रवृत्ति न करना । २) भाषा की सरलता अर्थात् बोलते समय कपट का आश्रय न लेना ।
३) भावों की सरलता यानी मनोभावों को छल कपट से दूर रखना ।
४) अविसंवादन योग अर्थात् मन, वचन, काया के व्यापारों में एक रूपता होना । मन से सोचना कुछ, वचन से कहना कुछ और काया से करना कुछ इस प्रकार की कुटिलता विसंवादन योग है तथा इसके विपरीत अविसंवादन योग कहलाता है। अशुभ नाम कर्मबंध के चार कारण
२) भाषा की वक्रता, ४) विसंवाद योग