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आयेगें । ७ भगवान महावीर ने से मुक्ति चाहने वाले साधकों को सभी दिशाओं (तीनों लोक) में खुले हुए कर्मों के स्रोतों से सावधान करते हुए कहा है, 'हे साधक ऊपर अर्थात् ऊर्ध्वदिशा में, नीचे अर्थात् अधो दिशा में तथा मध्य अर्थात् तिर्यग् दिशा में भी ये स्रोत हैं और इन स्त्रोतों को कर्मों का आगमन द्वार कहा है इनका सम्यक् प्रकार से निरीक्षण करके साधक को कर्म के स्रोतों को बंद कर देना चाहिए। ८
भगवान महावीर ने इससे आगे के सूत्र में कहा, 'आस्रवों के इन स्रोतों को बंद करके मोक्षमार्ग पर निष्क्रमण करने वाला साधक एक दिन कर्मों से रहित हो जाता है । वह कर्मों के आगमन की प्रक्रिया को और उनके स्रोतों को बंद करने का उपाय जानता हुआ, यत्नापूर्वक प्रवृत्ति करता हुआ ज्ञाता, द्रष्टा हो जाता है। वह इनकी परिज्ञा या प्रतिलेखना करता हुआ कर्मों की गति, आगति का परिज्ञान करके कर्म-संगों (विषय- सुख) की आकांक्षा नहीं रखता । ९
आस्रव एक ऐसी आग है जो आत्मा के अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतसुख और अनंतशक्ति के असीम प्रवाह को अवरुद्ध करती है । अतः साधक को आत्मविकास के लिए. यह आवश्यक है कि आस्रव की इस आग को तथा उसके उत्पादक व उत्तेजकों को भली भाँति समझकर हृदयंगम कर ले।
जैसे कुछ लोग दियासलाई जलाकर आग लगा देते हैं, तो कुछ लोग उस आग को भाभी देते हैं । इसी प्रकार आस्रव की आग लगाने वाले चार तत्त्व हैं और उत्तेजित करनेवाला एक तत्त्व है । ये पाँचों ही मिलकर आत्मभवन को विकृत एवं भस्मीभूत कर देते हैं। आस्रव - अग्नि को जलाने का प्रथम उत्पादक मिथ्यात्व है, दूसरा सहायक तत्त्व है, तीसरा प्रमाद, चौथा कषाय है और आग को भडकाने वाला अशुभ योग है।
जिस प्रकार पतंगे रोशनी देखते हुए खिचे चले आते हैं और रोशनी पर टूट पड़ते हैं, उसी प्रकार ये कर्म परमाणु भी इन चारों आस्त्रवाग्नियों का ताप देखते ही स्वतः आकृष्ट होकर चले आते हैं तथा आत्म प्रदेशों में बलात् प्रविष्ट हो जाते हैं। मिथ्यात्व, अविरति, प्रमाद और कषाय ये चारों प्रकार की आस्त्रावाग्नि दसवें गुणस्थान तक समस्त संसारी जीवों में तीव्र, मंदरूप में सतत् जलती रहती है।
अग्नि हवा के बिना प्रज्वलित नहीं हो सकती उसी प्रकार मिथ्यात्व, अव्रत, प्रमाद और कषायरूपी आस्रवाग्नियों को प्रज्वलित रखने वाली आयु त्रिविध अशुभ योग है। उत्तराध्ययनसूत्र में नमि राजर्षी और इन्द्र का संवाद प्रतिपादित है । इंद्र विप्र-वेष में आकर नमि राजर्षी की परीक्षा हेतु कहते हैं- 'भगवन्! यह अग्नी और यह पवन आपके मंदिर