________________
293 कषाय अध्यात्म के लिए दोषरूप हैं चाहे वे प्रकट हो या अप्रकगट, वे आत्मा के ज्ञान, दर्शन और चारित्ररूप शुद्ध स्वरूप को मलिन करते हैं। कषाय ही कर्म के उत्पादक हैं। वे जीव को दुःख देते हैं। कषाय न रहे तो कर्मबंध भी न रहें। आचार्य वीरसेन ने कषायों की कर्मोत्पादकता के संबंध में 'धवला'६१ ग्रंथ में कहा है- 'जो दुःखरूपी अनाज उत्पन्न करने वाले कर्मरूपी खेत को जोतते हैं, फलयुक्त करते हैं वे क्रोध, मान, माया आदि कषाय हैं।'
वेदनीय कर्म के उदय से होने वाला क्रोध आदि कालुष्य कषाय है अर्थात् आत्मा के कलुषित परिणाम को कषाय कहते हैं। कषाय आत्मा के स्वाभाविक स्वरूप को नष्ट करते हैं और कर्म के साथ आत्मा का संबंध जोडते हैं।६२
क्रोध, मान, माया, लोभ- इन चार कषायों के अलावा अनेक प्रकार के कषायों का निर्देश आगमग्रंथों में मिलता है। क्रोधादि चार कषायों को शास्त्रों में लुटेरों की उपमा दी गई है, परंतु इन लुटेरों में और सामान्य लुटेरों में यह अंतर है कि दूसरे प्रकार के लुटेरे संपत्ति का हरण करके भाग जाते हैं, परंतु क्रोधादिरूप लुटेरे आत्मा की संपत्ति को लुटकर आत्मा में ही छिपकर बैठ जाते हैं, इसलिए उन्हें 'अज्झत्थ दोसा' आत्मा में छिपे हुए दोष, रोग और तस्कर कहा गया है। . कषाय जीव को संसार में परिभ्रमण कराते हैं, इतना ही नहीं, उसके आत्मिक गुणों का घात भी करते हैं। क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करता है, माया-कपट मित्रता का नाश करती है और लोभ सभी गुणों का नाश करता है।६३
__ क्रोध से जीव का अध:पतन होता है। जीव अपने स्थान से भ्रष्ट होता है। जो स्थानभ्रष्ट हुए हैं, उनकी संसार में प्रतिष्ठा नहीं रहती। मान कषाय के कारण सद्गति प्राप्त नहीं होती, लोभ से इहलोक-परलोक के विषय में भय उत्पन्न होता है, इसलिए इन आत्मघाती कषायों को छोडना ही चाहिए।६४
कषाय का आगमन होने पर मनुष्य की बुद्धि तथा विचारशक्ति शून्य हो जाती है। उसमें विवेक नहीं रहता। सभ्यता और शिष्टाचार नहीं रहते इसलिए कषायों को चंडाल चौकडी कहा है। ये कषाय रात दिन कहीं भी अपने कुकर्म वृत्तिरूपी शस्त्र द्वारा जीव की शक्ति का हरण करते रहते हैं।६५ क्रोधादि कषाय आत्मा को कुगति में ले जाने के कारण होते हैं, आत्मास्वरूप की हिंसा करते हैं। इसलिए वे कषाय हैं।
क्रोध व मान ये दोनों द्वेष हैं। माया और लोभ ये राग हैं। आचार्यों ने कषायों (राग और द्वेष) का अन्य प्रकार से भी वर्णन किया है, क्योंकि राग और द्वेष प्रमुख आस्रव हैं। कषाय मुक्ति असली मुक्ति है।६६ योगशास्त्र६७ में भी यही बात कही है।