________________
290
७) असाधुओं को साधु मानना
पाँच महाव्रत, अष्ट प्रवचनमाता, कषायों की उपशांति, ज्ञान, ध्यान, त्याग, वैराग्य आदि गुण जो साधुओं में बतलाये हैं और गुणों का पालन जो साधु करते हैं उनको यदि असाधु कहे तो मिथ्यात्व है। ८) साधुओं को असाधु मानना
पाँच महाव्रत, अष्ट प्रवचनमाता, कषायों की उपशांति ज्ञान, ध्यान, त्याग-वैराग्य आदि जो गुण साधुओं में बतलाये हैं और गुणों का पालन जो साधु करते हैं उनको यदि असाधु कहे तो मिथ्यात्व। ९) अमुक्तों को मुक्त मानना
संसारी जीव को शुद्धात्मा मानना मिथ्यात्व है। १०) मुक्तों को अमुक्त मानना
सिद्धात्मा को संसारी आत्मा कहना मिथ्यात्व है।
इस प्रकार मिथ्यात्व को मोहनीय कर्म की प्रबल शक्ति कहा है। जो मनुष्य को मूढ़ बना देती है। इसके प्रभाव से मनुष्य सत्य को जानते हुए भी नहीं जान पाता, देखते हुए भी नहीं देख पाता और सुनते हुए भी अनसुना कर देता है। मिथ्यात्व के कारण ही जीव तीनों लोक के समस्त पदार्थों पर अपना अधिपत्य जमाता है। तीव्र कषायों का सेवन करके अशुद्ध लेश्याओं का उत्तेजित होना भी मिथ्यात्व-मद्य का नशा है।४४
मास-खमण की तपश्चर्या करने वाला अज्ञानी साधक पारणे के दिन कुश की नोंक पर आवे उतने भिक्षान्न को ग्रहण कर पुन: मासखमण (प्रतिज्ञा) करता है तथापि उसकी इतनी तपश्चर्या सम्यक्त्वी की सोलहवी कला के बराबर भी नहीं है। अव्रत (अविरती) आस्त्रव ___ विरती का अर्थ त्याग और त्याग न करना ‘अविरती' है अर्थात् इच्छा और पापाचरण से विरत न होना अविरत है। इन्द्रिय विषयों का त्याग न करना तथा त्याग की भावना न रखना, त्याग के बारे में उदासीन रहना और भोग में उत्साह दिखाना अविरती है।४६
मानव में एक आकांक्षा की वृत्ति होती है। उसके कारण उस पदार्थ में अनुरक्त होता है। उसे प्राप्त करने तथा भोगने की इच्छा रखता है उस वृत्ति से अस्तित्व में पदार्थों से विरक्त नहीं होती इसलिए इस वृत्ति का नाम अविरति है। इस अवस्था में मानव की दृष्टि पदार्थ के प्रति