Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
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पृ. १४९
८३. जिनवाणी कर्मसिद्धांत विशे., ८४. धर्म और दर्शन ( उपाचार्य देवेंद्र मुनिजी), पृ. ४७ ८५. खवित्ता पुव्व कम्माई, संजमेण तवेणय ।
सव्वदुक्ख पहिणट्ठा, पक्कमंति महेसिणो ॥ उत्तरा (संपा. मधुकरमुनि), २८/३६ ८६. जो सहस्सं... परमो जओ ॥ उत्तरा (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), ९.३४ / ३६ ८७. कर्मविज्ञान, भाग - १ ( उपाचार्य देवेंद्र मुनिजी), पृ. ४४५ ८८. विशेषावश्यकभाष्य ( गणधरवाद)
(पं. दलसुखभाई मालवणिया ), गा. १६१९-१६२१, पृ. ३७, ३८ ८९. ( गणधरवाद) (पं. दलसुखभाई मालवणिया ), गा. १६२५-२६-२७ ९०. रुपिणः पुग्गलाः पुद्गल रूपी (मूर्त) है।
तत्त्वा. सूत्र (विवेचन पं. सुखलालजी), अ. ५/४, २३ पृ. ११७ ९१. धवला (संपा. फूलचंद्र सिद्धांतशास्त्री), सूत्र २४, पृ. १३ कम्माण मुत्ताणि ||
९२. जम्हा कम्मस्स
पंचास्तिकाय (आ. कुंदकुंद), गा. १३३
९३. आप्तपरीक्षा (विद्यानंद स्वामी), श्लोक. ११५
९४. कर्म : एक विश्लेषणात्मक अध्ययन, ( उपाचार्य देवेंद्र मुनिजी), पृ. २५ ९५. तीर्थंकर महावीर और उनका सर्वोदय तीर्थ (डॉ. हुकुमचंद भारिल्ल), पृ. ९५
९६. कषायपाहुड (आचार्य गुणधर), १/१/१ पृ. ५७
९७. औदारिकादि............. क्वापि दृश्यते । तत्त्वार्थसार (अमृतचंद्रसूरि ), ५/१५ ९८. विशेषावश्यक भाष्य (गणधरवाद) दलसुखभाई मालवणिया, गा. १६२५ ९९. कर्मग्रंथ, भाग - १ ( मरुधर केसरी मिश्रीमलजी म. ), पृ. १५
१००. समयसार (कुंदकुंदाचार्य), गा. ४५
१०१. कत्ता भोत्ता आदा..... ववहारो । नियमसार (कुंदकुंदाचार्य), गा. १८ १०२. नहि कश्चित् क्षणमपि ... गुणैः ॥ भगवद्गीता, गोरखपुर प्रेस, पृ. ३ / ५ १०३. न कर्मणाम् नारम्भान्नैष्कर्म्य .... समधि गच्छति ।।
भगवद्गीता, गोरखपुर प्रेस, पृ. ३/४
१०४. कर्मेन्द्रियाणि.. स उच्चते ॥ भगवद्गीता, गोरखपुर प्रेस, पृ. ३/६ १०५. कर्मग्रंथ, भाग - १ (मरुधर केसरी मिश्रीमलजी म. ), पृ. २५-२६ .१०६. तत्त्वार्थसार (अमृतचंद्र सूरि), पृ. ११२, ११३
१०७. नवतत्त्व (श्री. अगरचंद्र भैरोदान सेठिया), पृ. ७६-८१
१०८. व्याख्याप्रज्ञप्ति (संपा. युवाचार्य मधुकर मुनि), श. ३.३.३ सू. १५०-१५३
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