Book Title: Jain Darm Me Karmsiddhant Ek Anushilan
Author(s): Bhaktisheelashreeji
Publisher: Sanskrit Prakrit Bhasha Bhasha Vibhag
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१०९. जैनतत्त्व प्रकाश (जैनाचार्य अमोलकऋषिजी म.), पृ. ३५४-३६३ ११०. जैनेन्द्र सिद्धांत कोश (क्षु. जिनेन्द्रवर्णी), भाग - २, पृ. १७४ १११. अर्थागम (भगवती सूत्र), (सं पुष्पभिक्खु), खंड- २ पृ. ६२१-६७८ ११२. जैन कर्मसिद्धांत एक तुलनात्मक अध्ययन, (डॉ. सागरमल जैन), पृ. ५१ ११३. कर्मविज्ञान, भाग-१ (उपा. देवेन्द्रमुनि), पृ. ५०७ ११४. तत्त्वार्थसूत्र, अ. ६, सूत्र - ५ ११५. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र, (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श. ८, उ. ८ सूत्र- ३४१-३४२ ११६. व्याख्याप्रज्ञप्ति सूत्र, (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श. ७, उ. १ सूत्र - २६७ ११७. जाव सजोगी केवली भवई .... अकम्मया च भवई।
उत्तरा. सूत्र, ((संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), अ. २९/७१ ११८. जैन कर्मसिद्धांत एक तुलनात्मक अध्ययन, (डॉ. सागरमल जैन). प. ५४ ११९. पम्माय कम्म माहसु अपम्माय तहाडवरं ।
सूत्रकृतांग सूत्र ((संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), अ. १/८/३ १२०. नाणं च दंसणं चेव .... वरदसिहि।
उत्तरा. सूत्र, (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि) अ. २८/२ १२१. महाभारत (शांतिपर्व), २४० १२२. दशवैकालिकसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), अ. ९/४/४,५ १२३. सूत्रकृतांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. - ८ गा. २२-२४ १२४. किं कर्म.... मोक्ष्यसेऽशुभात्।
सूत्रकृतांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. - ८ गा. २३-२४ .१२५. जे आसवा ते परिसवा .
(श्रीमदभगवद गीता, गीताप्रेस- गोरखपुर), अ. ४, सूत्र १६ १२६. आचारांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. ४ उ. २ १२७. सूत्रकृतांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. -८/ २३, २४ १२८. जिनवाणी कर्मसिद्धांत विशेषांक (किशोर मश्रुवाला), पृ. २५० १२९. पमाय कम्ह माहंसु अप्पभाव तहावर।
सूत्रकृतांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. - ८ गा. ३ १३०. पमत्ते बहिया पास, अप्पमत्ते तथा परिक्कमिज्जासि।
आचारांगसूत्र (संपा. युवाचार्य मधुकरमुनि), श्रु. १, अ. ४, उ. १ १३१. जैन कर्मसिद्धांत एक तुलनात्मक अध्ययन, (डॉ. सागरमल जैन), पृ. ४९ .१३२. पुरुषार्थसिद्ध्युपाय (श्रीमद् अमृतचंद्राचार्य), गा. ४६, ४७, ५१, ४५
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