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तात्पर्य यह है कि, अनासक्ति और अकर्तव्यदृष्टि से जो कर्म किया जाता है, वह रागद्वेष के अभाव में अकर्म है, किन्तु प्रगट रूप से कोई भी कर्म होता हुआ न दिखाई देने पर भी अगर कर्ता के मन में त्याग का अभिमान या आग्रह है, फलेच्छा है, तो वह कर्म अकर्म प्रतीत होने वाले कर्म को भी कर्म बना देता है । १४६
बौद्ध दर्शन में कर्म, विकर्म और अकर्म विचार
बौद्ध दर्शन में भी कर्म, विकर्म और अकर्म का विचार किया है, वहाँ इन्हें क्रमशः कुशल (शुक्ल) कर्म, अकुशल (कृष्ण) कर्म और अव्यक्त (अकृष्ण अशुक्ल) कर्म कहा गया है। जैन दर्शन में जिन्हें पुण्य (शुभ) कर्म और पाप (अशुभ) कर्म कहा है, उन्हें बौद्ध दर्शन में कुशल (शुक्ल) और अकुशल (कृष्ण) कर्म कहा है। बौद्ध परंपरा में प्रायः फल देने की योग्यता - अयोग्यता को लेकर कर्म का विचार किया गया है। जिन्हें जैन परंपरा में क्रमश: (सांपरायिक) विपाकोदय एवं (ईर्यापथिक) प्रदेशोदय कर्म कहा है, उन्हें ही बौद्ध परंपरा में क्रमशः उपचित, अनुपचित कर्म कहा है । १४७
महाकर्म विभंग में कृत और उपचित को लेकर चार विकल्प भंग प्रस्तुत किये गये हैं । १) अकृत किन्तु उपचित कर्म, २) कृत भी और उपचित भी, ३) कृत है किंतु उपचित नहीं और ४) कृत भी नहीं और उपचित भी नहीं ।
कौन से कर्म बंधकारक कौन से अबंधकारक
बौद्धदर्शन का मन्तव्य है कि, इनमें से प्रथम दो भंगो में प्रतिपादित कर्म प्राणी को बंधन में डालते हैं। शेष दो भंगों में उक्त कर्म बंधन में नहीं डालते हैं। बौद्ध आचार परंपरा में राग-द्वेष, मोह से युक्त होने पर ही कर्म को बंधकारक माना जाता है। राग-द्वेष रहित होकर किये गये कर्म बंध कर्ता नहीं माने जाते।१४८ जैनकर्म सिद्धांत तुलनात्मक अध्ययन में भी यही बात है । १४९ तीनों धाराओं में कर्म, विकर्म और अकर्म में समानता
निष्कर्ष यह है कि, जैन, बौद्ध और वैदिक (गीता) तीनों धाराओं में कर्म को बंधक और अबंधक इन दो भागों में विभाजित किया गया है। अबंधक कर्म (क्रिया व्यापार) को जैन दर्शन में (ईर्यापथिक कर्म या अकर्म ), वैदिक (गीता) दर्शन में अकर्म और बौद्ध दर्शन में अव्यक्त या अकृष्ण- अशुक्ल कर्म कहा गया है। तीनों धाराओं की दृष्टि में अकर्म तात्पर्य कर्म का अभाव या मन वचन काया कृत क्रिया का अभाव नहीं अपितु कर्म के संपादन से वासना, इच्छा रागादि से प्रेरित कर्तव्य भाव का अभाव ही अकर्म है, अबंधक शुद्ध कर्म है तथा वासनादि भाव से संपादित कर्म बंधकारक है। बंधककर्म के दो विभाग