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लिए काल, स्वभाव, नियति, कर्म और पुरुषार्थ इन पाँचों का समुदाय होना आवश्यक है, वैसे ही जगत् के समस्त कार्यों के लिए काल आदि पाँचों समुदाय रूप कारण हैं, इन पांचों कारणों में से किसी एक को ही कारण मानना कथमपि अभीष्ट एवं अपेक्षित नहीं है । इसलिए समस्त कार्यों की निष्पत्ति के लिए पंच कारण सामग्री ही अभीष्ट मानी गई है । ५९
कर्मवाद के अस्तित्व में कालवाद, स्वभाववाद और नियतिवाद के स्वरूप का विवेचन किया है। प्रत्येकवाद अपनी-अपनी दृष्टि बिंदु से आंशिक रूप से तो सत्य है, किन्तु वह पूर्ण सत्य (प्रमाणसत्य) नहीं है। संपूर्ण सत्य तो अनेकांत वाद में है, दोनों नेत्र खुले रखकर नय और प्रमाण दोनों दृष्टियों से विचार करने में है ।
एकांत कालवाद
कालवादी यह कहने लग जाये कि संसार के समस्त कार्यों का एकमात्र काल ही आधार है, तो उसका यह कथन सत्य नहीं है, काल-रूपी समर्थ कारण के सदैव रहते हुए भी अमुक कार्य कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता । अतः यह नियत व्यवस्था अकेले काल से संभव नहीं है। काल समान रूप से हेतु होने पर भी कपडा तंतु से तथा घड़ा मिट्टी ही उत्पन्न होता हो, यह प्रतिनियत लोक व्यवस्था काल के द्वारा घटित नहीं हो सकती । प्रतिनियत कार्य के लिए प्रतिनियत उपादान कारण स्वीकार करना अभिष्ट है । ६०
एकांत स्वभाववाद
स्वभाववादी यदि यह कहे कि जगत् के समस्त कार्य को निष्पन्न करने में स्वभाव ही एक मात्र कारण है, तो यह कथन एकांत होने से मिथ्या होगा। प्रत्येक पदार्थ का अपने द्वारा संभावित कार्य करने का स्वभाव होने पर भी उस कार्य की निष्पत्ति या विकासशीलता केवल स्वभाव से नहीं हो सकती, उसके लिए अन्य कारण सामग्री भी अपेक्षित होती है। मिट्टी के पिण्ड में घड़े को उत्पन्न करने का स्वभाव होने पर भी उसकी उत्पत्ति, कुंभकार, दण्ड, चक्र, चीवर आदि पूर्ण सामग्री के होने पर ही हो सकती है। उस घड़े को पकाने, ऊपर से रंगने आदि विकास का कार्य भी कुंभकार आदि के पुरुषार्थ से होता है, स्वभाव से नहीं।
अतः स्वभाववाद का आश्रय लेकर निराशावाद को स्थान देना उचित नहीं । स्वभाव नियतता होने पर भी अन्य कारण सामग्री से आँखें मूंद लेना ठीक नहीं । ६१ एकांत नियतिवाद
एकांत नियतिवाद को मानकर यह समझ बैठे कि जो होना होगा, वही होगा, हमारे . करने से क्या होगा? अथवा सर्वज्ञ प्रभु ने जैसा देखा होगा वही होगा, या विधाता ने भाग्य