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१) अमनोज्ञशब्द - अप्रिय या कर्णकटु कर्कश स्वर, अपने या पराये लोगों से सुनने को
मिलते हैं। २) अमनोज्ञरूप - स्वपर का अमनोज्ञ और सुंदरतारहित रूप देखने को मिलता है। .३) अमनोजगंध - किसी भी निमित्त से अमनोज्ञ गंध की प्राप्त होती है। ४) अमनोज्ञरस- बेस्वाद, रुखा, सूखा या अत्यंत खट्ठा, खारा, नीरस या बासी भोजनादि
प्राप्त होता है। ५) अमनोज्ञस्पर्श (अप्रिय स्पर्श प्राप्ति) - अमनोज्ञ कठोर, कर्कश और दु:खद संवेदना
उत्पन्न करने वाले स्पर्श प्राप्त होती है। ६) मन दुःख (दुर्भावयुक्त मन की प्राप्ति होती है।)- अमनोज्ञ मानसिक अनुभूतियाँ, चिन्ता,
___ तनाव, उद्विग्नता आदि की प्राप्ति होती है। ७) वचन दुःख (अप्रिय वचन की प्राप्ति) - निन्दा, अपशब्द या अपमानजनक शब्दों के
रूप में अप्रिय वचन चारों ओर से सुनने को मिलते हैं। .८) काया दुःख (अमनोज्ञ शरीर प्राप्ति) - शरीर में विविध रोग, पीडा, अस्वस्थता, अंग
भंग या अंग विकलता आदि दुःखद शारीरिक संवेदनाएँ प्राप्त होती हैं। . संक्षेप में यदि कहे तो जिस कर्म के उदय से आत्मा को प्रतिकूल विषयों की प्राप्ति तथा प्रतिकूल इंद्रिय विषयों की प्राप्ति आदि के कारण जीव को दुःख का अनुभव होता है यह सब असाता वेदनीय कर्म है।९३ प्रज्ञापना सूत्र ४ में भी यही बात कही है। सातावेदनीय कर्म दश प्रकार से बांधे १) पाणाणुकंपियाए - प्राणी की अनुकंपा करने से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है। २) भूयाणुकंपियाए - भूत की अनुकंपा करने से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ३) जीवाणुकंपियाए - जीव अनुकंपा करने से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ४) सत्ताणुकंपियाए - सत्त्व अनुकंपा करने से सातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ५) बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं अदुक्खणीयाए - बहु प्राणी, भूत, जीव, सत्व
को दुःख देना नही। ६) असोयणियाए - शोक करना नहीं। ७) अझुरणियाए - झूरना नहीं। ८) अटीप्पणियाए - अश्रुपात करना नहीं।