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शक्तियों को न केवल आवृत करता है, अपितु उन्हें विकृत, मूर्च्छित और कुंठित भी कर देता है। जैसे ज्ञानावरणीय कर्म के कारण आत्मा सम्यक् रूप से जान नहीं पाती, तो दर्शनावरणीय कर्म के कारण यथार्थ को देख नहीं पाती और अंतराय कर्म के कारण विविध शक्तियों को प्रकट नहीं कर पाती। मोहनीय कर्म के कारण आत्मा अपनी शक्ति का उपयोग करने में समर्थ होते हुए भी परभावों में इतनी फँस जाती है, कि यथार्थ आचरण नहीं कर पाती। यही कारण है कि मोहनीय कर्म दृष्टि में भी विकार पैदा करता है और आचरण में भी विकृति पैदा करता है।
इस संसार में प्राणियों के जीवन को सबसे अधिक मोहित करने वाला मोहनीय कर्म है। जिससे आत्मा अपने शुद्ध आत्म भाव को भूलकर राग-द्वेष में फँस जाती है। इसी कर्म के कारण आत्मा को स्वरूप रमण में बाधा उपस्थित होती है। आत्मा का सच्चा शत्रु मोहनीय कर्म ही है, क्योंकि वह केंद्रीय कर्म है।
यहाँ प्रश्न हो सकता है, कि मोहनीय कर्म के सर्वथा नष्ट होने पर भी अघाती कर्मों की सत्ता कुछ समय तक शेष रहती है, इसलिए उन अघाती कर्मों को मोहनीय कर्म के आधीन कैसे माना जा सकता है? इसका समाधान देते हुए कर्म मर्मज्ञ कहते हैं कि मोहनीय कर्म नष्ट हो जाने पर जन्म-मरण परंपरा रूप संसार के उत्पादन का सामर्थ्य शेष कर्मों में नहीं होने से उन कर्मों की सत्ता भी असाता के समान ही हो जाती है। यही कारण है, मोहनीय कर्म को जन्मरणादि दुःखरूप संसार का मूल कहा है। . आगमों में मोहनीय कर्म को सेनापति की उपमा दी गई है। जिस प्रकार सेनापति के चल बसने पर सेना में भागदौड़ मच जाती है, वैसे ही मोहनीय कर्म का नाश होने पर शेष तीन घाति कर्म नष्ट हो जाते हैं और चार अघाति कर्म भी आयुष्य कर्म के क्षय होते ही समाप्त हो जाते हैं।
मोहनीय कर्म ने बडे-बडे महापुरुषों को पराजित किया है। चार ज्ञान के धनी, लब्धि निधान गणधर इन्द्रभूति गौतम प्रशस्त मोह के कारण भगवान महावीर की उपस्थिति में केवलज्ञान को उपलब्ध नहीं कर सके थे।१०१
जड़ के बिना वृक्ष टिक नहीं सकता है। नींव के बिना बिल्डिंग टिक नहीं सकती है उसी प्रकार आत्मा के संसार परिभ्रमण का मुख्य कारण यह मोहनीय कर्म है।१०२ मोहनीय कर्म सबसे प्रबल है, क्योंकि सुख-दु:ख के निमित्त एवं संयोग तो वेदनीय कर्म के द्वारा प्रस्तुत हो जाते हैं, किन्तु उन पर राग-द्वेष करके आत्मा को एक को अच्छा और एक को बुरा, एक पर मनोज्ञता और दूसरे पर अमनोज्ञता की छाप मोहनीय कर्म के वशीभूत होकर लगती है।