________________
199
१) हास्य • जिस कर्म के उदय से कारण वश अर्थात् भांड आदि की चेष्टा देखकर अथवा बिना कारण के हंसी आती है, उसे हास्य मोहनीय कर्म कहते हैं। २) रति
जिस कर्म के उदय से सकारण या अकारण पदार्थों में राग, प्रेम हो, उसे रतिमोहनीय कर्म कहते हैं। ३) अरति ___ जिस कर्म के उदय से कारणवश या बिना कारण के पदार्थों से अप्रीति, द्वेष होता है, उसे अरति मोहनीय कर्म कहते हैं। ४) भय
जिस कर्म के उदय से कारणवश या बिना कारण वश भय हो या डर हो उसे भय मोहनीय कर्म कहते हैं। भय के सात प्रकार हैं।१२५ आवश्यक सूत्र१२६ में भी यही बात
आयी है। ५) शोक
कारणवश या बिना कारण ही जिस कर्म के उदय से शोक हो, उसे शोक मोहनीय कर्म कहते हैं। ६) जुगुप्सा - जिस कर्म के उदय के कारण या बिना कारण के ही बीभत्स-घृणाजनक पदार्थों को देखकर घृणा पैदा होती है, उसे जुगुप्सा मोहनीय कर्म कहते हैं। ____ मैथुन सेवन करने की इच्छा को 'वेद' कहते हैं। चिह्न विशेष को 'द्रव्य वेद' और तदनुरूप अभिलाषा को 'भाववेद' कहते हैं। वेद के तीन भेद : स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद। ७) स्त्रीवेद
जिस कर्म के उदय से स्त्री को पुरुष के साथ रमण करने की इच्छा हो उसे स्त्रीवेद कहते हैं। ८) पुरुषवेद . जिस कर्म के उदय से पुरुष को स्त्री के साथ रमण करने की इच्छा हो उसे पुरुषवेद कहते हैं।