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९) अपीट्टणियाए - पीटना नहीं। १०) अपरितावणियाए - परितापना (पश्चाताप) करना नहीं।९५ असातावेदनीय बारह प्रकार से बांधे १) परदुक्खणियाए - दूसरों को दुःख देने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। २) परसोयणियाए - दूसरों को शोक कराने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ३) परझुरणियाए - दूसरों को झुराने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ४) परटीप्पणियाए - दूसरों के आँसू गिरवाने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ५) परपीट्टणियाए - दूसरों को पीटने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ६) परपरितावणियाए - दूसरों को परिताप देने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ७) बहूणं पाणाणं भूयाणं जीवाणं सत्ताणं दुक्खणियाए - बहु प्राणी, भूत, जीव, सत्त्वों को
दुःख देने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ८) सोयणियाए - शोक करने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ९) झुरणियाए - झुरने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। १०) टीप्पणियाए - आँसू गिराने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। ११) पीट्टणियाए - पीटने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है। १२) परितावणियाए - परितापना देने से असातावेदनीय कर्म का बंध होता है।९६ वेदनीय कर्म की स्थिति अ) सातावेदनीय कर्म की स्थिति
जघन्य दो समय की९७ उत्कृष्ट १५ कोडाकोडी सागरोपम९८ की, अबाधाकाल करे तो जघन्य अन्तर्मुहूर्त की उत्कृष्ट डेढ हजार वर्ष की होती है। उत्तराध्ययन सूत्र में यही बात है।९९ ब) असातावेदनीय कर्म की स्थिति . जघन्य एक सागर के सात हिस्सों में से तीन हिस्से और एक पल्य के असंख्यातवें भाग गुणी उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम की। अबाधाकाल की स्थिति तीन हजार वर्ष की।' साता असाता वेदनीय कर्म का प्रभाव
सातावेदनीय कर्म के प्रभाव से जीव को शरीर और मन से संबंधित सुखानुभाव होता है, जब कि असातावेदनीय कर्म के प्रभाव से आत्मा को नरकादि गतियों में दुःख का अनुभव